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देश में विदेश के सलाहकार सेनदार,
प्रीति में अनीति रीति, भूल के न लाइये।
नीतिवान बुद्धिमान, राजकाज जानकार,
नेक राज एक बार, देश में बनाइये॥
जाति-पांति भेद-भाव, ऊँच-नीच के दुराव,
हैं समाज कोढ़-घाव, दूर छोड़ आइये।
देवियाँ करें पुकार, तात मान एक बात,
लाज आज नारियों कि, देश में बचाइये॥

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Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 11:21pm

यहाँ घनाक्षरी के चार पदों में चार-चार चरण के होने की बात करें तो विधान को समझने में आसानी होगी.  यानि, घनाक्षरी वर्णिक छंद है जिसमें चार पद होते हैं और प्रत्येक पद चार चरणों में बँटा होता है. जिसे ८,८,८,७  के यति  पर होना कहा जाता है.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 15, 2013 at 10:29pm
आदरणीय नूतन जी! प्रस्तुत रचना मनहरण घनाक्षरी में आबद्ध है।जिसका विधान निम्नवत है-
यह एक वर्णिक छंद है,जिसमें चार चरण होते हैं।प्रत्येक चरण में 16,15 वर्णों के आधार पर 31 वर्ण होते हैं।या छंद की लयात्मकता के लिये 8,8,8,7 वर्णों पर यति के साथ 31 वरण होते हैं।गणात्मक मनहरण घनाक्षरी लिखने के लिये निम्नलिखित सूत्र का पालन करते हैं-
(रगण,जगण)*2+रगण+लघु,
(रगण,जगण)*2+रगण
या
राजभा जभान राजभा जभान राजभा लघु
राजभा जभान राजभा जभान राजभा
या
2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 1

2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2
शेष तो गुरुजन ही कह सकते हैं।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 15, 2013 at 10:15pm
आदरणीय ब्रिजेश जी सादर आभार!
Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on March 15, 2013 at 9:59pm

सुन्दर रचना... क्या धनाक्षरी छंद पर थोड़ा प्रकाश डालेंगे...

Comment by बृजेश नीरज on March 15, 2013 at 7:41pm

बहुत सुन्दर!

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