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(सार / ललित छंद16+12मात्रायें:- छन्नपकैया छंद पर एक प्रयोग )

ईचक दाना बीचक दाना,होली होली प्यारी।
भर पिचकारी साजन मारी,रंगी सारी सारी॥
ईचक दाना बीचक दाना,उड़ता रंग अबीरा।
हुलियारों की टोली आयी,गाते फाग कबीरा॥
ईचक दाना बीचक दाना,भंग चढ़ी अब हमको।
प्रेम पर्व होली है भाई,रंग दूँगा मैं सबको॥
ईचक दाना बीचक दाना,गुझिया हलवा पूरी।
गुलगुल्ला और छने जलेबी,खाये धनिया झूरी॥
ईचक दाना बीचक दाना,दादा दादी छुपकर।
छक्कर पीते भंग झूमते,रंग खेलते डटकर॥
ईचक दाना बीचक दाना,बड़ी तेज मंहगाई।
खाली थैली गर्म मार्केट,होली जाय भुलाई॥

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Comment by Dr.Prachi Singh on March 22, 2013 at 4:07pm

होली पर सुन्दर प्रस्तुति विन्ध्येश्वरी जी 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by राजेश 'मृदु' on March 21, 2013 at 4:47pm

कमाल है, इतनी सुंदर रचना और अबतक अनदेखी, बहरहाल ढेरों बधाईयां इस सुंदर प्रस्‍तुति पर । देशज शब्‍द में साली को 'सारी'  भी कहा जाता है, इस परिप्रेक्ष्‍य में 'भर पिचकारी साजन मारी,रंगी सारी सार' का अर्थ बड़ा सुंदर आया है, सादर

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