जिन्दगी एक कठपुतली सी है
जिसकी डोर .....
वो जो ऊपर बैठा है
उसके हाथो में है
वो जो दीखता नही
मगर है तो सही .....
कोई कहता है कि
भगवान नही हैं
और कोई भगवान पर
अटूट विश्वाश रखता है
मगर सच तो सिर्फ इतना सा है
जब कोई प्रार्थना हो जाती है स्वीकार
तो लगता है जैसे ईश्वर
हमारे कण - कण में हैं
जो सुन लेते हैं हमारी पुकार
दिल से निकलते ही ....
मगर जब ........
बार-बार पुकारने पर भी
ईश्वर सुनते नही .....
या यूँ कहूँ कि
प्रार्थना कुबूल नही होती जब
बार-बार करने पर भी
तब लगता है कि
ईश्वर हैं ही नहीं
कही भी नही .......
क्यों हम इंसानों के स्वार्थ पर
निर्भर करता है
भगवान का अस्तित्व ......?????
जिन्दगी एक कठपुतली सी है…
जिसकी डोर .....
वो जो ऊपर बैठा है
उसके हाथो में है
वो जो दीखता नही
मगर है तो सही .........
दुनिया की भीड़ में कई बार
जब हो जाते हैं एकदम अकेले
सभी अपनों के बीच भी
रह जाते है तन्हा से ...
तब कोई दोस्त मिलता है ऐसा
जो समझ लेता है आपकी हर बात को
जो जानना चाहता है आपकी परेशानी
जो धीरे धीरे आपका
सबसे करीबी बन जाता है .....
उसमे भी तो ईश्वर का ही
रूप होता है .......
वरना कहाँ ऐसा होता है
कि बिना कुछ लिए ही
कोई आपके बारे में सोचे
आपकी फ़िक्र करे .........
आपसे प्यार करे .......
क्योंकि ऐसा तो सिर्फ माँ, पापा ही करते हैं
जो बिना कुछ मांगे, बिना कुछ लिए
आपको अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं
बिलकुल उस ईश्वर की तरह
जिसके हाथो में हमारी जिन्दगी की डोर है
वो जो रहता है हमारे कण कण में
धडकता है धड़कन में .....
बसता है सांसो में .....
जिसे पल पल हमारी खबर रहती है
हमारे बिना कुछ कहे .......
वो भी समझ लेता है हमारी हर बात को
जान लेता है हमारी ज़रूरतों को
और पूरा भी कर देता है
उन्हें अपने हिसाब से ...
बिलकुल माँ, पापा की तरह .......!!!!
Comment
तब कोई दोस्त मिलता है ऐसा
जो समझ लेता है आपकी हर बात को
जो जानना चाहता है आपकी परेशानी
जो धीरे धीरे आपका
सबसे करीबी बन जाता है .....
उसमे भी तो ईश्वर का ही
रूप होता है .......
प्रतिक्रिया पहले दे चुका था ... अब आपकी कविता के भावों को पुन:
सराहा तो इस भाव की सच्चाई और ही अच्छी लगी।
सियाराममय सब जग जानी
जो धीरे धीरे आपका
सबसे करीबी बन जाता है .....
उसमे भी तो ईश्वर का ही
रूप होता है .......
वरना कहाँ ऐसा होता है
कि बिना कुछ लिए ही
कोई आपके बारे में सोचे
आपकी फ़िक्र करे .........
आपसे प्यार करे .......
वास्तव में सच कहा है आपने।सोनम जी, इतनी अच्छी रचना हेतु बधाई स्वीकार करें। अत्यंत सरलता से ईश्वर एवं माता -पिता में उनका आभास दिलाना,कविता का सुन्दर सन्देश ग्राह्य है।
आदरणीय विजय सर जी सादर नमस्कार
समय व आशीर्वाद देने के लिए आभार व धन्यवाद सर जी
आदरणीय योगी सर नमस्कार
आपने कविता को समझा और अपना समय दिया ...बहुत बहुत शुक्रिया सर
आदरणीया सोनम जी:
सरलता और सच्चाई से बुनी इस कविता के लिए बधाई।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
दुनिया की भीड़ में कई बार
जब हो जाते हैं एकदम अकेले
सभी अपनों के बीच भी
रह जाते है तन्हा से ...
तब कोई दोस्त मिलता है ऐसा
जो समझ लेता है आपकी हर बात को
जो जानना चाहता है आपकी परेशानी
जो धीरे धीरे आपका
सबसे करीबी बन जाता है .....
उसमे भी तो ईश्वर का ही
रूप होता है .......
वरना कहाँ ऐसा होता है
कि बिना कुछ लिए ही
कोई आपके बारे में सोचे
आपकी फ़िक्र करे .........
आपसे प्यार करे .......
बहुत सुन्दर ! ये तो है सोनम जी ! जब भगवान् सुन लेता है , मनोकामना पूरी हो जाती है तो लगता है भगवन है लेकिन जब कुछ नहीं होता , दुःख होता है तब लगता है भगवान् तो क्या इस दुनिया में ही शायद कोई नहीं है ! बहुत सुन्दर !
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