वक़्त बहता रहा
कभी पानी की तरह
कभी हवा के मानिद
हम भी बहते रहे बहाव में इसके
कभी फूल बनकर
कभी धूल बनकर .....
कब जिदगी के उस छोर से हम
इस छोर पर आ गये
वक़्त ने समझने ही नही दिया
बस सब आँखों को समझा दिया
बंद करते हैं आँखे तो
खुद को उसी मोड़ पर पाते हैं
जब भी चाहत होती है कि जी लें
अपनी उसी जिन्दगी को
जिसमे जिन्दगी हुआ करती थी
तो झट से आँखे बंद कर लेते हैं
जब छोटे थे तो समय की चाल से बेखबर थे
सुबह माँ की आवाज़ से होती थी और
माँ से कहानियाँ सुनते सुनते ही सो जाते थे
आज भी समझ तो नही पाए
मगर महसूस कर लेते है
भागते वक़्त की चाल को
भांप लेते हैं ...........
बदलते वक़्त के साथ कैसे
बदल जाते हैं रिश्ते जान गये हैं
वक़्त बदल देता है दिल की भावनाओ को भी
ये भी मान गये हैं ....
अब बस असर वक़्त का
मुझ पर भी हो जाये ...
बदला है दिल जैसे उनका
मेरा भी दिल बदल जाये ........!!!!!!
Comment
कविता भावनाओं का शब्दिक प्रस्तुतिकरण होती है तो शब्दों के गठन और उनके स्वरूप के प्रति हम संवेदनशील हें. भाव सुन्दर हैं.
आपका प्रयास बना रहे.
आप सभी आदरणीय जनों को सादर नमस्कार ........
आप सभी ने रचना को इतना सराहा, मेरी भावनाओ को समझा इसके लिए दिल से आभारी हूँ मैं आप सभी की!
आप सभी के आशीर्वाद और सहयोग से यहाँ लिखना संभव हो पाता है , आदरणीय प्राची मैम आपकी प्रतिक्रिया का हमेशा ही
बहुत ज्यादा इंतज़ार रहता है, विजय सर, राजीव सर, अशोक सर, एस के चौधरी व संदीप कुमार पटेल सर आप सभी का बहुत बहुत आभार व धन्यवाद ..........यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें ...........धन्यवाद
आज भी समझ तो नही पाए मगर महसूस कर लेते है भागते वक़्त की चाल को भांप लेते हैं ........... बदलते वक़्त के साथ कैसे बदल जाते हैं रिश्ते जान गये हैं वक़्त बदल देता है दिल की भावनाओ को भी ये भी मान गये हैं .... बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .
बंद करते हैं आँखे तो
खुद को उसी मौड़ पर पाते हैं
जब भी चाहत होती है कि जी ले
अपनी उसी जिन्दगी को
जिसमे जिन्दगी हुआ करती थी
तो झट से आँखे बंद कर लेते हैं .............सच है हम जीन्दगी के कुछ पलों को आसानी से भुला नहीं पाते और जो पल जींदगी ही थे तो फिर उसको कौन भुला सकता है. सुन्दर रचना आदरणीया सोनम जी.
ज़िंदगी एक सतत प्रवाह का नाम है... परिवर्तन हर हाल में होता ही है, सभी की ज़िंदगी में होता है...
जब भी चाहत होती है कि जी ले
अपनी उसी जिन्दगी को
जिसमे जिन्दगी हुआ करती थी
तो झट से आँखे बंद कर लेते हैं .........समय के साथ ही चलना और परिवर्तन को सहर्ष स्वीकार करना आगे बढने के लिए बहुत ज़रूरी है. ज़िंदगी को गुज़रे लम्हों की यादों में बार बार खोजना तकलीफदेह होता है और हाथ कुछ भी नहीं आता.
अब बस असर वक़्त का
मुझ पर भी हो जाये ...
बदला है दिल जैसे उनका
मेरा भी दिल बदल जाये ........!!!!!!..........दिल को बदलना नहीं होता, सिर्फ सोच को और नज़रिए को बदलना होता है, और मन को बुद्धि की तार्किकता के समक्ष झुकाना होता है. फिर अपना दिल बेबस नहीं अपने ही बस में होता है. :)
आत्मउद्गारों की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..
शुभेच्छाएँ
बहुत अच्छे भाव पिरोए हैं। बधाई।
सादर,
विजय निकोर
वक़्त के साथ अच्छा तालमेल है आपका
इसके साथ साथ चलना कम लोगों को आता है
जिसको आता है वो खुश है
जिसको नही आता वो दुखी
बधाई हो आपको इस रचना हेतु
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