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मिट्टी के घरोंदे टूट गये .......

मिट्टी के घरोंदे टूट गये
इंटो के महल बनाने मे
हम भूल गये संस्कृति अपनी
खुद को आधुनिक बनाने मे
पापा का प्यार न याद रहा
माँ की ममता भी भूल गये
ये बच्चे जो मशगुल हुए
खुद की पहचान बनाने में
जो प्यार मेरा सच्चा होता
दो पल में ही लौट आते वो
वो समझे नहीं जज्बात मेरे
मैंने उम्र गवां दी समझाने में
जिन्हें अपना अपना कहते थे
वो एक पल में पराया कर गये
हम याद नही करते उनको मगर
तकलीफ बड़ी है भुलाने में
जो दोस्त मेरे होते थे
वो दोस्त भी सारे बदल गये
विश्वाश भी अब तो डरता हैं
प्यार किसी से जताने में  
है लाख बुरे हम ठहरे
लेकिन दिल तो अपना सच्चा है
है वक़्त अभी भी लौट आओ
कही देर बहुत न हो जाये
हमे इतना आजमाने में  
हवा चमन की बदल गयी
पेडो के रूप भी बदल गये
गलती कर बैठा है शायद माली
इस बार बीज लगाने में .....!!!!!!!!!!!!!!

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Comment

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Comment by vijay nikore on April 16, 2013 at 2:58pm

सोनम जी:

 

आपकी रचना में भाव अच्छे लगे।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Sonam Saini on April 16, 2013 at 1:55pm

आप सभी आदरणीय जनों को सादर नमस्कार
राम सिरोमनि जी रचना को पसंद करने के लिए बहुत आभार , परवीन मैम आपने अपना कीमती समय दिया
बहुत बहुत शुक्रिया ...... :) हम्म दुनिया ख़तम नही होती किसी के न आने पर मगर कुछ लोग जिन्दगी में ऐसे होते हैं
जिनके न आने पर जिन्दगी के मायने बदल जाते हैं , आदरणीय अशोक कुमार सर जी लय का ध्यान ही नही रहा लिखते समय
आपने मार्गदर्शन किया बहुत बहुत आभार व धन्यवाद सर जी ..... योगी सर रिश्तो के मतलब बदल गये हैं , सब बदल जाता है तो
ये भी बदल गये ... बहुत बहुत धन्यवाद 


Comment by Yogi Saraswat on April 13, 2013 at 10:36am
बहुत सही लिखा आपने सोनम जी , अधिनिकता के चलते हम अपने और गैरों में फर्क नहीं कर पा रहे हैं ! आप रिश्तों पर बहुत सुन्दर लिखती हैं !
Comment by Ashok Kumar Raktale on April 12, 2013 at 8:39am

आदरणीया सोनम जी सुन्दर अभिव्यक्ति, कुछ गाकर लिखा होता तो अटकाव भी ख़त्म होते

मिट्टी के घरोंदे टूट गये
इंटो के महल बनाने मे
हम भूल गये संस्कृति अपनी
खुद को आधुनिक बनाने मे  "आधुनिकता अपनाने में,"

Comment by Parveen Malik on April 10, 2013 at 8:31pm

हम्म बहुत ही सटीक बात है आधुनिकता के चलते अपनी संस्कृति को भूल गए ...

इतनी मायूसी अछि नहीं उनके चले जाने पर 

दुनिया ख़तम नहीं होती किसी के ना आने पर ...

Comment by ram shiromani pathak on April 9, 2013 at 7:33pm

पापा का प्यार न याद रहा 
माँ की ममता भी भूल गये 
ये बच्चे जो मशगुल हुए 
खुद की पहचान बनाने में

बहोत ही सुन्दर रचना है !हार्दिक बधाई 

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