मिट्टी के घरोंदे टूट गये
इंटो के महल बनाने मे
हम भूल गये संस्कृति अपनी
खुद को आधुनिक बनाने मे
पापा का प्यार न याद रहा
माँ की ममता भी भूल गये
ये बच्चे जो मशगुल हुए
खुद की पहचान बनाने में
जो प्यार मेरा सच्चा होता
दो पल में ही लौट आते वो
वो समझे नहीं जज्बात मेरे
मैंने उम्र गवां दी समझाने में
जिन्हें अपना अपना कहते थे
वो एक पल में पराया कर गये
हम याद नही करते उनको मगर
तकलीफ बड़ी है भुलाने में
जो दोस्त मेरे होते थे
वो दोस्त भी सारे बदल गये
विश्वाश भी अब तो डरता हैं
प्यार किसी से जताने में
है लाख बुरे हम ठहरे
लेकिन दिल तो अपना सच्चा है
है वक़्त अभी भी लौट आओ
कही देर बहुत न हो जाये
हमे इतना आजमाने में
हवा चमन की बदल गयी
पेडो के रूप भी बदल गये
गलती कर बैठा है शायद माली
इस बार बीज लगाने में .....!!!!!!!!!!!!!!
Comment
सोनम जी:
आपकी रचना में भाव अच्छे लगे।
सादर,
विजय निकोर
आप सभी आदरणीय जनों को सादर नमस्कार
राम सिरोमनि जी रचना को पसंद करने के लिए बहुत आभार , परवीन मैम आपने अपना कीमती समय दिया
बहुत बहुत शुक्रिया ...... :) हम्म दुनिया ख़तम नही होती किसी के न आने पर मगर कुछ लोग जिन्दगी में ऐसे होते हैं
जिनके न आने पर जिन्दगी के मायने बदल जाते हैं , आदरणीय अशोक कुमार सर जी लय का ध्यान ही नही रहा लिखते समय
आपने मार्गदर्शन किया बहुत बहुत आभार व धन्यवाद सर जी ..... योगी सर रिश्तो के मतलब बदल गये हैं , सब बदल जाता है तो
ये भी बदल गये ... बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीया सोनम जी सुन्दर अभिव्यक्ति, कुछ गाकर लिखा होता तो अटकाव भी ख़त्म होते
मिट्टी के घरोंदे टूट गये
इंटो के महल बनाने मे
हम भूल गये संस्कृति अपनी
खुद को आधुनिक बनाने मे "आधुनिकता अपनाने में,"
हम्म बहुत ही सटीक बात है आधुनिकता के चलते अपनी संस्कृति को भूल गए ...
इतनी मायूसी अछि नहीं उनके चले जाने पर
दुनिया ख़तम नहीं होती किसी के ना आने पर ...
पापा का प्यार न याद रहा
माँ की ममता भी भूल गये
ये बच्चे जो मशगुल हुए
खुद की पहचान बनाने में
बहोत ही सुन्दर रचना है !हार्दिक बधाई
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