तेरे सपनो की कोई औकात नहीं
मेरे सपने हैं बहुत बड़े
मुझसे जब यह बात कही उसने
मेरे दिल ने बस एक बात कही......
एक बार वो लड़की बनकर तो देखे
खुद- ब- खुद समझ जायेगा मेरी मज़बूरी को
क्यों इतने छोटे हैं मेरे सपने
वो भी समझ जायेगा इस सच्चाई को
एक बार वो ........................
बचपन से ही मैंने सीखा
जो मुझको दुनिया ने सिखाया
माँ ने सिखाया, पापा ने सिखाया
मेरे बड़े भाई ने सिखाया,
तू लड़की है,
लड़की बन कर रह तू
घर के काम में ध्यान लगा
सपनो की धारा में न बह तू
एक बार वो लड़की सा सुनकर तो देखे
खुद- ब - खुद समझ जायेगा मेरी मज़बूरी को
एक बार वो .......................
जब भी मैंने बढ़ना चाहा
आगे बढकर पढ़ना चाहा
कदमो में मेरे डाली बेड़ी
मैं लड़की हूँ , बस इसलिए न खेली ??????
उड़ना नहीं सीखा मैंने
मेरे पंखो की भी खता नहीं
उड़ने से पहले ही पंख गवां बैठी
लड़की होने की मुझे सजा मिली
एक बार वो लड़की -सा हो कर तो देखे
खुद- ब - खुद समझ जायेगा मेरी मज़बूरी को !!
Comment
आदरणीया सोनम जी. सच है हमारे समाज में लड़कियों के पैरों में बेडी पड़ी रहती है. कोई पुरुष इसको न समझे तो फिर ऐसे भाव आना स्वाभाविक है. सुन्दर भावपूर्ण रचना. बधाई स्वीकारें.
सोनम जी हालांकि आपने बहुत कुछ सच्चाई बयाँ की है किन्तु अब वक़्त के धारे के साथ बहना है इतनी बंदिशों मजबूरियों के बाद भी आज लड़की ने अपनी काबिलियत का परिचय दिया है एक छोटा सा उदाहरण ---घर का काम करके भी पढ़ाई में लड़कों से ज्यादा नंबर लाती है उनसे कहिये लड़की बनकर ऐसा करके तो दिखाइये माँ बनकर सबको संभालती हैं बाहर नौकरी भी करती हैं ये सब करके दिखाइये । शायद आपकी पोस्ट पहली बार ही पढ़ी है अच्छा लिखा है आपने लिखती रहिये शुभकामनायें |
आदरणीया सोनम जी, ’कदमो में मेरे डाली बेड़ी
मैं लड़की हूँ ए बस इसलिए न खेली ?????
उड़ना नहीं सीखा मैंने’ अतिसुन्दर । बधाई स्वीकारें। सादर,
जब भी मैंने बढ़ना चाहा
आगे बढकर पढ़ना चाहा
कदमो में मेरे डाली बेड़ी
मैं लड़की हूँ , बस इसलिए न खेली ??????
उड़ना नहीं सीखा मैंने
मेरे पंखो की भी खता नहीं
उड़ने से पहले ही पंख गवां बैठी
लड़की होने की मुझे सजा मिली
एक बार वो लड़की -सा हो कर तो देखे
खुद- ब - खुद समझ जायेगा मेरी मज़बूरी को !!
सत्य है,
बधाई
सोनम जी:
इस विषय पर जितना लिखा जाए कम है। हम सभी को मिल कर नारी का उत्थान करना है।
शायद आपने मेरी कविता "नारी का मन" पढ़ी होगी ... नारी के मन पर क्या बीतती है, उसमें यह
दृष्टांत किया था।
आपकी रचना के भाव सत्य से भरपूर हैं।
बधाई। लिखते रहिए।
सादर,
विजय निकोर
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ................. |
बहुत सुन्दर रचना बन पड़ी है बहन सोनम जी !! हार्दिक बधाई
आगे बढकर पढना चाहा
कदमो में मेरे डाली बेडी
मैं लड़की हूँ , बस इसलिए न खेली ??????
उड़ना नहीं सीखा मैंने
मेरे पंखो की भी खता नहीं
उड़ने से पहले ही पंख गवां बैठी
लड़की होने की मुझे सजा मिली
एक बार वो लड़की -सा हो कर तो देखे
खुद- ब - खुद समझ जायेगा मेरी मज़बूरी को !!
सोनम जी , यहाँ आपसे असहमत हूँ ! जहां चाह वहां राह ! बात मानने की है की लड़कियों के लिए सब कुछ आसान नहीं होता लेकिन बहुत लड़कियां ऐसी भी हैं जिन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया है और अपने नाम और काम को बुलंदियों तक पहुँचाया है !
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