हमने चुना
अपने लिए
एक नर्क
या धकेल दिया था तुमने
हमें नर्क में...
कोई फर्क नहीं पड़ता...
नर्क
भले ही जैसा था
हमने उसमें बसने का
बना लिया मन
और ठुकरा दिया
तुम्हारे स्वर्ग को
उन लुभावने सपनो को
जिसे दिखलाते रहे तुम
और तुम्हारे दलाल...
और जिस स्वर्ग के लालच में
फंसती रहीं
हमारी कई कई पीढियां...
धरे रहो तुम अपना स्वर्ग
अपनी तिजौरियों में
हमें छोड़ दो
हमारे हालात पे...
हम खोज लेंगे
अपने लिए खुशी के क्षण
गंधाते हुए
बजबजाते हुए
तड़पाते हुए माहौल में भी....
Comment
अनवर सुहैल जी, आपकी इस रचना पर मैं मुग्ध भी हूँ और आपकी साहित्यिक ताकत का दीवाना भी. आपकी यह रचना इस मंच के लिए कम फख्र की बात नहीं है.
इस रचना के परिप्रेक्ष्य में यह कहना गलत न होगा कि आप जैसा सुधी और मानसिक रूप से इतना प्रखर सदस्य अपना सहयोगी है.
सादर
अति सुन्दर!
अनवर जी , कितनी पीड़ा झलकती है इस रचना में,फ़िरभी कवि का स्वाभिमानी मन झुकने को तैयार नहीं .अति सुन्दर .
जिस विधि राखे , उस विधि रहिये...... हर हाल में खुश
फिर नर्क से क्या डरना..
जब चारों तरफ नारकीय हालात हों, तो भी उम्मीद की किरण और उस परमशक्ति पर विश्वास जो हमार भीतर ही विद्यमान है ऐसी ही सकारात्मक सोच देती है
हम खोज लेंगे
अपने लिए खुशी के क्षण
गंधाते हुए
बजबजाते हुए
तड़पाते हुए माहौल में भी....
हार्दिक बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online