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और इस नज़रिए से देखता हूँ
तो हर शाह मुझे
भिखारी दिखलाई देता है....
और मैं बिन मांगे लौट आता हूँ...
बहुत सुंदर सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई, अनवर जी....
क्या खूब , एक कसक ......
आपसे प्रेरणा मिलती रहेगी |
सादर
किसी के सामने हाथ फैलाना कितना कठिन है खासकर जो स्वाभिमानी हो . अनवर जी उत्तम रचना के लिये बहुत बहुत बधाई हो.
वाह ! लाजवाब रचना !!!
एक उम्दा विषय पर लिखी गयी उत्कृष्ट कविता के लिए हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार कीजियेगा आदरणीय अनवर जी ।
महोदय सर्वश्रेष्ठ रचना का पुरस्कार पाने के सादर बधाई स्बीकारें।
और इस नज़रिए से देखता हूँ
तो हर शाह मुझे
भिखारी दिखलाई देता है....
और मैं बिन मांगे लौट आता हूँ..
बधाई सर जी
सादर
बहुत बढ़िया प्रस्तुति सुंदर विचार आपकी बातों का मै भी अनुमोदन करती हूँ हार्दिक बधाई|
बहुत बहुत उम्दा साहब
बधाई हो आपको
नीचे लिखी प्रतिक्रियाओं का अनुमोदन करता हूँ!
मंगना है तो मांगो शाह से......
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