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ऐसे लोगों का जीना क्या.....

इत्ते सारे लोग यहाँ हैं
इत्ती सारी बातें हैं
इत्ते सारे हंसी-ठहाके
इत्ती सारी घातें हैं...

बहुतों के दिल चोर छुपे हैं
सांप कई हैं अस्तीनों में
दांत कई है तेज-नुकीले
बड़े-बड़े नाखून हैं इनके
अक्सर ऐसे लोग अकारन
आपस में ही, इक-दूजे को
गरियाते हैं..लतियाते हैं

इनके बीच हमें रहना है
इनकी बात हमें सुनना है
और इन्हीं से बच रहना है...

जो थोड़ें हैं सीधे-सादे
गुप-चुप, गम-सुम
तन्हा-तन्हा से जीते हैं
दुनियादारी से बचते हैं
औ' अक्सर ये ही पिटते हैं
कायरता को, दुर्बलता को
किस्मत का चक्कर कहते हैं...
ऐसे लोगों का रहना क्या
ऐसे लोगों का जीना क्या.....

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 18, 2013 at 2:47am

आदरणीय अनवर भाईसाहब, क्षमा कि आपकी रचना पर विलम्ब से आ पारहा हूँ.

आपने शब्दों के मध्य अंतर्गेयता को जिस खूबी से निभाया है कि रचना के इंगित स्वयं मुखर हो उठे हैं. विवशता अकर्मण्यता का प्रारूप होती है यह तथ्य मुखरता से साझा हुआ है. पहले संज्ञा को परिभाषित करना और फिर इस परिभाषाजन्य संज्ञा को लताड़ना एक सार्थक रचना के साझा होने कारण हुआ है, आदरणीय.

आपकी रचना के लिए आपका सादर धन्यवाद.

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 12, 2013 at 11:19pm

जो थोड़ें हैं सीधे-सादे
गुप-चुप, गम-सुम
तन्हा-तन्हा से जीते हैं
दुनियादारी से बचते हैं
औ' अक्सर ये ही पिटते हैं
कायरता को, दुर्बलता को
किस्मत का चक्कर कहते हैं...
ऐसे लोगों का रहना क्या
ऐसे लोगों का जीना क्या............वाह!  बहुत खूब.

आदरणीय अनवर साहब बहुत सुन्दर रचना दिल को छू गयी. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by manoj shukla on April 10, 2013 at 9:48pm
कायरता को दुर्बलता को किस्मत का चक्कर कहते हैं....सही कहा है आपने ....अपने काव्य के माध्यम से आज के समाज का यह सत्य उजागर करने के लिए गुरुवर आप को हार्दिक बधाई
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 10, 2013 at 4:41pm

इत्ते सारे लोग यहाँ हैं, इत्ती सारी बातें हैं 
इत्ते सारे हंसी-ठहाके,इत्ती सारी घातें हैं... सुन्दर पंक्तिया बधाई अनवर सुहैल भाई 

Comment by ram shiromani pathak on April 10, 2013 at 1:21pm

बहुत सुन्दर  बधाई 

Comment by coontee mukerji on April 10, 2013 at 11:47am

इनके बीच हमें रहना है

इनकी बात हमें सुनना है

और इनहीं से बच के रहना है.........वाह...! क्या  बात है . जल में रह कर कौन मगरमच्छ  से बैर करे .सुहैल जी .आपको बहुत बधाई.

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