इत्ते सारे लोग यहाँ हैं
इत्ती सारी बातें हैं
इत्ते सारे हंसी-ठहाके
इत्ती सारी घातें हैं...
बहुतों के दिल चोर छुपे हैं
सांप कई हैं अस्तीनों में
दांत कई है तेज-नुकीले
बड़े-बड़े नाखून हैं इनके
अक्सर ऐसे लोग अकारन
आपस में ही, इक-दूजे को
गरियाते हैं..लतियाते हैं
इनके बीच हमें रहना है
इनकी बात हमें सुनना है
और इन्हीं से बच रहना है...
जो थोड़ें हैं सीधे-सादे
गुप-चुप, गम-सुम
तन्हा-तन्हा से जीते हैं
दुनियादारी से बचते हैं
औ' अक्सर ये ही पिटते हैं
कायरता को, दुर्बलता को
किस्मत का चक्कर कहते हैं...
ऐसे लोगों का रहना क्या
ऐसे लोगों का जीना क्या.....
Comment
आदरणीय अनवर भाईसाहब, क्षमा कि आपकी रचना पर विलम्ब से आ पारहा हूँ.
आपने शब्दों के मध्य अंतर्गेयता को जिस खूबी से निभाया है कि रचना के इंगित स्वयं मुखर हो उठे हैं. विवशता अकर्मण्यता का प्रारूप होती है यह तथ्य मुखरता से साझा हुआ है. पहले संज्ञा को परिभाषित करना और फिर इस परिभाषाजन्य संज्ञा को लताड़ना एक सार्थक रचना के साझा होने कारण हुआ है, आदरणीय.
आपकी रचना के लिए आपका सादर धन्यवाद.
जो थोड़ें हैं सीधे-सादे
गुप-चुप, गम-सुम
तन्हा-तन्हा से जीते हैं
दुनियादारी से बचते हैं
औ' अक्सर ये ही पिटते हैं
कायरता को, दुर्बलता को
किस्मत का चक्कर कहते हैं...
ऐसे लोगों का रहना क्या
ऐसे लोगों का जीना क्या............वाह! बहुत खूब.
आदरणीय अनवर साहब बहुत सुन्दर रचना दिल को छू गयी. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
इत्ते सारे लोग यहाँ हैं, इत्ती सारी बातें हैं
इत्ते सारे हंसी-ठहाके,इत्ती सारी घातें हैं... सुन्दर पंक्तिया बधाई अनवर सुहैल भाई
बहुत सुन्दर बधाई
इनके बीच हमें रहना है
इनकी बात हमें सुनना है
और इनहीं से बच के रहना है.........वाह...! क्या बात है . जल में रह कर कौन मगरमच्छ से बैर करे .सुहैल जी .आपको बहुत बधाई.
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