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बेशक उसका जन्म हुआ है

बेशक उसका जन्म हुआ है

मंदिर में स्थापित देवताओं को

दूर से प्रणाम करने के लिए

 

बेशक उसका जन्म हुआ है

मंदिर प्रांगण के बाहर से

टुकुर-टुकुर ताकने के लिए

 

बेशक उसका जन्म हुआ है

अपनी वर्तमान दुर्दशा के लिए

खुद को ज़िम्मेदार मानने के लिए

 

बेशक यदि वो नही पहुंचे

तो सफल नही हो सकता

उनका कोई विशिष्ट आयोजन...

 

बेशक यदि वह नहीं जाए

तो भरपेटो के पैसों से बना

इतना सारा भोग-प्रसाद

फिर कौन खाए....

 

जाने क्यों वो

अपनी दुर्दशा का कारण

समझ नहीं पाता है

और उनके भव्य आयोजनों को सफल बनाने

सपरिवार भूखे पेट,

पहुँच ही जाता है....

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Comment

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Comment by वेदिका on April 15, 2013 at 12:38pm
और उनके भव्य आयोजनों को सफल बनाने

सपरिवार भूखे पेट,

पहुँच ही जाता है....
सुंदर अभिव्यक्ति
Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 8:55am

वाह! मगर  मजबूरी और गुलामी की जंजीरों  को काट पाना आसान भी तो नहीं. सुन्दर रचना हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय अनवर सौहेल जी.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 7:18pm

जाने क्यों वो

अपनी दुर्दशा का कारण

समझ नहीं पाता है

और उनके भव्य आयोजनों को सफल बनाने

सपरिवार भूखे पेट,

पहुँच ही जाता है....--------बहुत गहरे और मन को सिहरा देने वाले भाव, हम कितने विकसित हुए ?

ये पंक्तिया बता  रही है  |  बहुत बहुत बधाई भाई अनवर सुहैल जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 14, 2013 at 5:27pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय अनवर जी 

मर्मस्पर्शी, शब्दों से मन को झकझोरती, सशक्त अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2013 at 5:23pm

जाने क्यों वो

अपनी दुर्दशा का कारण

समझ नहीं पाता है

और उनके भव्य आयोजनों को सफल बनाने

सपरिवार भूखे पेट,

पहुँच ही जाता है.

अनुत्तरित 

बधाई,

सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 4:05pm

आ0 अनवर सुहैल जी, ’बेशक यदि वो नही पहुंचे
तो सफल नही हो सकता
उनका कोई विशिष्ट आयोजन...’ अतिसुन्दर। बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by ram shiromani pathak on April 14, 2013 at 1:44pm

बेशक उसका जन्म हुआ है

मंदिर प्रांगण के बाहर से

टुकुर-टुकुर ताकने के लिए

 

बेशक उसका जन्म हुआ है

अपनी वर्तमान दुर्दशा के लिए

खुद को ज़िम्मेदार मानने के लिए///////////

बहुत सुन्दर! आदरणी अनवर  जी,

Comment by Vindu Babu on April 14, 2013 at 10:22am
वाह आदरणी अनवर महोदय बिना नाम लिए ही स्पष्ट वर्णन कर दिया आज की अनदेखी सी समस्या का आपने। बहुत सुन्द शिल्प!
सादर बधाई स्वीकारें।
Comment by बृजेश नीरज on April 14, 2013 at 10:09am

बहुत सुन्दर!

Comment by coontee mukerji on April 14, 2013 at 9:48am

बेशक उनका जन्म हुआ है

मंदिर प्रांगण के बाहर

दूर से प्रणाम करने के लिये.......इन्ही तीन लाईनों ने बहुत कुछ कह दिया है . आपको बहुत बधाई ,

कृपया ध्यान दे...

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