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चारपाई पर लेटे लेटे ,
ख्याली पुलाव पका रहा था !
सुन्दर अभिनेत्री के साथ ,
झील में नहा रहा था !!

इशारा किया पास आओ ,
इतने में शर्मा गयी!
उसकी यह चंचल अदा
मुझे और भी भा गयी !!

चारपाई पर लेटने वाला ,
पहुच चुका था महल में !
बच्चे की तरह दुलार रही ,
छिपाकर अपने आंचल में !!

मुझे क्या पता था ,
स्वप्न देख रहा हूँ !
साबुन के गुब्बारे को ,
हाथ से लपेट रहा हूँ !!

भव्य था वह कमरा,
कोमल बिस्तर चादरें मखमल !
नींद मेरी तब टूटी ,
जब काटा मुझे खटमल !!


राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित

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Comment

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Comment by coontee mukerji on April 1, 2013 at 1:03am

आशीस  जी ख्याली पुलाव अच्छा पका.खटमल तक ठीक  है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 31, 2013 at 10:49pm

भाई आशीषजी की बातों का मैं सहर्ष समर्थन करता हूँ.  :-)))

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 31, 2013 at 10:46pm

मैं समझ रहा था कवि किसी और ही श्रृंगार रस की तरफ बढ़ रहा है लेकिन सुखद अंत हुआ, स्वप्न का भी और कविता का भी |
उस खटमल को प्रणाम... :-D
सुन्दर हास्य कविता के लिए बधाई भाई पाठक जी |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 31, 2013 at 6:30pm

यह भी सही.. .  :-))

Comment by vijay nikore on March 31, 2013 at 6:26pm

राम जी,

हास्य कविता अच्छी लगी।

 

सादर,

विजय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 31, 2013 at 6:07pm

हाहाहा... ऐसे खयाली पुलावों का यही हश्र होता है.

हास्य पर बहुत सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2013 at 5:20pm

खटमल का इलाज करे मुक्कमल, 

ख्याली पुलाव पके न बिन अलाव 

सुन्दरता के पीछे भागो न भाई, सपने में तुम्हारे आई, 

पहले पूरी करो अपनी पढ़ाई | अभी तो ले लो मेरी बधाई 

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