अंतिम स्पंदन
यदि मैं अर्पित करता भी स्नेह
उमड़ता रहा है जो मन में मेरे
क्षण-अनुक्षण तुम्हारे लिए,
कोई अंतरित ध्वनि कह देती है..कि
स्नेह इतना तुम सह ही न सकती,
और फिर द्वार तुम्हारे से लौट आए
अस्वीकृत स्नेह का बींधता क्रंदन...
मैं ही स्वयं उसको सह न सकता।
अबोध बालक-सा सकुचाता, बिलखता,
यह सशंक स्नेह अंतहीन वेदना संजोए
तुमको निष्फल पुकार-पुकार कर,
पत्थर-दिल चट्टानों से टकरा-टकरा कर
किस-किस बादल की ओट में बरसता?
मेरे ह्रद्य की धड़कन जब शिथिल पड़ जाए
तो इस अस्वीकृत अनुरक्त स्नेह को प्रिय
तुम झुकी हुई पलकों से कुछ पल के लिए
अपने अंतरमन के प्राणों में आश्रय दे देना,
और ऐसे में यदि हो जाएँ झंक्रत तार तुम्हारे,
अपने ओंठों के स्निग्ध स्पर्ष के स्पंदन से
अथवा आँखो से बहते अंजन से तुम मुझको
रात के सन्नाटे में स्वयं अलविदा कह देना।
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//स्नेहिल प्यार की वेदना में सनी सुन्दर अभिव्यक्ति आपकी रचनाओं की विशेषता है | इसी कड़ी में एक और सुन्दर रचना
अन्तिम स्पंदन के लिए हार्दिक बधाई//
इन आत्मीय भावनाओं से मेरी रचनाओं को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।
स्नेहिल प्यार की वेदना में सनी सुन्दर अभिव्यक्ति आपकी रचनाओं की विशेषता है | इसी कड़ी में एक और सुन्दर रचना
अन्तिम स्पंदन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय श्री विजय निकोरे जी
//बहुत ही आला अभिव्यक्ति - वाह.//
आपसे ऐसी सराहना मिलना मेरे लिए पारितोषिक है, आदरणीय भाई योगराज जी।
सादर,
विजय
//और ऐसे में यदि हो जाएँ झंक्रत तार तुम्हारे,
अपने ओंठों के स्निग्ध स्पर्ष के स्पंदन से
अथवा आँखो से बहते अंजन से तुम मुझको
रात के सन्नाटे में स्वयं अलविदा कह देना।//
बहुत ही आला अभिव्यक्ति - वाह.
आदरणीया उषा जी:
सर्वप्रथम मैं क्षमाप्रार्थी हूँ कि आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया पर इतनी देर से लिख रहा हूँ।
आपके उत्साहवर्धन से इस रचना को सार्थकता प्राप्त हुई। आपको मेरा हार्दिक
धन्यवाद।
सादर,
विजय निकोर
वाह!
अथवा आँखो से बहते अंजन से तुम मुझको
रात के सन्नाटे में स्वयं अलविदा कह देना।
स्नेह नहीं तो विदा ही सही.
बहुत ही अधिक लगाव प्रियतम के लिए.
सादर
उषा
आदरणीय सौरभ भाई:
प्रोत्साहन के लिए आपका आभारी हूँ |
रचना को सारगर्भित संज्ञा देने के लिए आपका धन्यवाद |
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
मानसिक अभिव्यंजनाओं को शब्द मिले हैं, आदरणीय विजयभाईजी.
वृत्तियों को अर्थ, साथ ही मिली दिशा. यह होती है रचनाधर्मिता !!
सादर
आदरणीय विजय मिश्र जी:
//श्रेष्ठता लिए हुए तो आपकी सभी रचनाएँ होतीं हैं , यहाँ प्रसंशा के केवल एक शव्द --- आत्मविभोर//
इतना मान देने के लिए हार्दिक आभार। आशा है ऐसे ही संबल देते रहेंगे।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीया सावित्री जी:
आपको कविता अच्छी लगी, मुझको आपसे संबल मिला। हार्दिक धन्यवाद।
सादर,
विजय निकोर
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