मन की
विभिन्न चेष्टाओं के
फिसलने धरातल पर
असंख्य आवर्तन
धकेलती कुण्ठाओं के.
पूर्वजों से
अर्जित संस्कारों का क्षय
आत्मघाती विचारों का
प्रस्फुटन और लय.
क्षितिज अवसादों के,
दिखाते शिथिल आयामों की
सूनी डगर
टूटते स्वप्नों पर
पथराई नजर.
उभरती शंकाएं, विचलित श्रद्धाएं.
हाहाकार करते, प्रश्रय खोजते
थके हारे प्रयास
अनन्त शून्य की अनन्त यात्रा
भय से बिखरा विश्वास.
त्रासित प्राण
कब लेगा विश्राम?
या पाएगा परित्राण
जब होगा प्रयाण?
Comment
आज के युग के विरोधाभास को दर्शाती अच्छी रचना हुई है 'फिसलने धरातल' का अर्थ नहीं समझ पाया शायद यह फिसलते धरातल होना चाहिए था, सादर
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