कुण्डलियां
सुधार के बाद पुनः प्रस्तुत
हॅसी हुदहुद खंजन से, पिकहु कूक रहि जाय।
बुलबुल मैना खग गुने, सुगा भी टेटियाय।।
सुगा भी टेटियाय, काग कांव कांव करता।
चातक बया तिलेर, टिटेहरी टेर कसता।।
बगुला रखता मौन, हंस गौरैया सरसीं।
मयूर बुलाय कौन, खिलखिल सब चिडि़यां हॅसीं।।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
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आदरणीय बृजेश कुमार सिंह जी, जी सर, सुधार कर दिया है। अब आशा करता हूं कि आप को आनन्द मिल सकेगा। आपका आदर सहित हार्दिक आभार,
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी, जी सर, बसंत में बहुत सारी चिडि़यों को एक साथ चीं चीं करते सुन कर मेरे मन मे बस यूं ही विचार उठा कि सारी चिडि़यां फागू के रंग मे रंग कर एक दूसरे से हसीं ठिठोल कर रहीं हैं। चूंकि मोर तो बरसात में नाचता है, इसलिए उसे कौन बुलाय..कह कर सारी चिडि़यां हॅस कर उड़ गयी। जी सर, पता नहीं क्यों मुझसे ऐसी गलतियां हो रही है। एक तो मुझे कम्प्यूटर का कम ज्ञान है। और कुछ जल्दी भी हो जाती है। जी सर, अब आशा करता हूं कि आप को आनन्द मिल सकेगा। आदर सहित हार्दिक आभार,
अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकारें। शेष आदरणीय रक्ताले साहब ने आपको मार्गदर्शन दिया ही है।
सुधार...
हॅसी हुदहुद खंजन से, पिकहु कूक रहि जाय।
बुलबुल मैना खग गुने, सुगा भी टेटियाय।।
सुगा भी टेटियाय, काग कांव कांव करता।
चातक बया तिलेर, टिटेहरी टेर कसता।।
बगुला रखता मौन, हंस गौरैया सरसीं।
मयूर बुलाय कौन, खिलखिल सब चिडि़यां हॅसीं।।
आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, मुझे लगता है आपने कुण्डलिया छंद पर प्रयास किया है. सुन्दर प्रयास है. एकाध जगह मात्रा गणना में त्रुटी हुई है मगर जहां मैं चाहता हूँ काम की आवश्यकता है वह प्रथम और अंतिम पंक्ति में है. प्रथम पंक्ति का मुझे अर्थ ही समझ नहीं आया की आप क्या कहना चाह रहे हैं. और अंतिम पंक्ति में " मयूरा नाचे कौन, खिल खिल सब चिड़ियाँ हँसी" मित्र बात अधूरी रह गयी. मुझे आशा है आप जैसा भावपूर्ण रचनाओं का रचनाकार इसे पल में सुधार लेगा.सादर.
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