For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुण्डलियां


ःः.1.ःः
मन्दिर-मन्दिर नेम से, पाथर  पूजा  जाय।
दीन दलित असहाय को, चोर समझ डपटाय।।
चोर समझ डपटाय, तनिक न रहम करत हैं।
लातन से लतियाय, पुलिस का काम करत हैं।।
बालक रो बतलाय, साब! कस बांधत जन्जिर।
रोटी हित दर आय, समझ दाता का मन्दिर।।


ःः.2.ःः
पोलिस थाना जान ले, आफत का घर होय।
रपट लिखाये जात हैं, मिले दुःख बहु रोय।।
मिले दुःख बहु रोय, समझ ना पावत कुछ हैं।
दारोगा  जी  सोय, दीवान  मांगत  कुछ हैं।।
उठ  दरोगा  डपटे, सबसे लगवाय पौलिस।
चोर को  दें  कट्टे, शाह को झटके पोलिस।।

के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 462

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 9:22pm

आ0 अशोक कुमार रक्ताले जी, निजी कार्यवश और कुछ नेट समस्या के कारण विलम्ब हुआ। क्षमा प्रर्थना सहित, जी! मैं आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूं। मूल प्रति में सुधार कर लिया है,  तथा आपके विनय पूर्ण उत्साह बढ़ाने हेतु मैं आपका हार्दिक अभारी हूं। आपसे बस यूं ही स्नेह बनाये रहने की अपेक्षा रखता हूं।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 9:19pm

आ0 अरून कुमार निगम जी, निजी कार्यवश और कुछ नेट समस्या के कारण विलम्ब हुआ। क्षमा प्रर्थना सहित, जी! मैं आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूं। मूल प्रति में सुधार कर लिया है,  तथा आपके विनय पूर्ण उत्साह बढ़ाने हेतु मैं आपका हार्दिक अभारी हूं। आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 9:08pm

आ0 राम शिरोमणि पाठक जी,  आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।  सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 14, 2013 at 12:51pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, चोर पुलिस और समाज में हुई घटना पर सुन्दर कुण्डलिया छंद रचे हैं, थोड़े ही सुधार में छंद निखर जायेंगे. शुभकामनाएं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on April 14, 2013 at 10:10am

प्रिय केवल प्रसाद जी, दोनों ही कुण्डलिया में चित्र सजीव हो उठे हैं. बधाई.

कृपया मात्रा गणना पुन: देख लें  " तनिक न रहम करत हैं"

//मेरी स्थिति भी बिलकुल अभिमन्यु जैसी ही है...महारथियो के बीच में घबरा जाता हूं//

घबराहट छोड़िये भैया जी, यहाँ महारथी कोई नहीं है, सभी पैदल हैं, एक दूसरे के साथ , एक दूसरे के सहारे.

Comment by ram shiromani pathak on April 13, 2013 at 7:04pm

आदरणीय केवल जी,बहुत ही सुन्दर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 13, 2013 at 8:29am

आ0 संदीप कुमार पटेल जी, सुप्रभात! आपने कुण्डलिों पर समीक्षा की बहुत अच्छा लगा। मुझे भी लग रहा था कि कहीं कुछ गड़बड़ है।
जैसे लातन से लतियाये ................’लातों से लतियाना’ एक मुहावरा जैसा ही है।
हाथों से तो लतियाया नहीं जायेगा ........’हाथों से थपडि़याना’ ... लिखा जाता है।
‘डपटाय‘ का अर्थ नहीं समझ पाया हूँ क्षमा सहित..... बहुत जोर से डाटा।
दरोगा को दारोगा लिखना क्या सही है///....जी! आज भी दैनिक जागरण मे छपा है कि डाकू छवि राम का पुत्र दारोगा बन गया।
दीवान मांगत कुछ हैं।। प्रवाह बाधित है...जी! यहां स्पष्ट न लिख पाने के करण ही संदेह है।
\\उठ दरोगा डपटे, सबसे लगवाय पौलिस।
चोर को दें कट्टेए शाह को झटके पोलिस।।//प्रवाह के साथ साथ शिल्प भी भंग है ...जी! यहां भी संशय के कारण ही प्रवाह रूक रहा ...एैसा हो सकता है....‘‘कटटे दें चोर को‘‘
तुकांत का दोष है ..जी! मेरी स्थिति भी बिलकुल अभिमन्यु जैसी ही है...महारथियो के बीच में घबरा जाता हूं। आपके लाभप्रद सुझाव के लिए मैं तहेदिल से आभारी हूं।  आपका स्नेह बस यूं ही बना रहे। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। सादर,

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 10:09pm

आदरणीय केवल जी सादर 

बहुत ही सुन्दर प्रयास हुआ है मात्राएँ भी साधीं हैं आपने उस  लिहाज से 

किन्तु कथ्य अटपटा सा लग रहा है 

जैसे लातन से लतियाये 

हाथों से तो लतियाया नहीं जायेगा 

"डपटाय" का अर्थ नहीं समझ पाया हूँ क्षमा सहित

दरोगा को दारोगा लिखना क्या सही है ????

 दीवान  मांगत  कुछ हैं।। प्रवाह बाधित है 

\\उठ  दरोगा  डपटे, सबसे लगवाय पौलिस।
चोर को  दें  कट्टे, शाह को झटके पोलिस।।\\प्रवाह के साथ साथ शिल्प भी भंग है 

तुकांत का दोष है 

आदरणीय कृपया इनमे सुधार कर लें 

सादर शुभकामनाएं आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service