कुण्डलियां
सुधार के बाद पुनः प्रस्तुत
हॅसी हुदहुद खंजन से, पिकहु कूक रहि जाय।
बुलबुल मैना खग गुने, सुगा भी टेटियाय।।
सुगा भी टेटियाय, काग कांव कांव करता।
चातक बया तिलेर, टिटेहरी टेर कसता।।
बगुला रखता मौन, हंस गौरैया सरसीं।
मयूर बुलाय कौन, खिलखिल सब चिडि़यां हॅसीं।।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 प्रदीप कुमार सिंह जी, उत्साह बढ़ाने हेतु मैं आपका हार्दिक अभारी हूं। सादर,
सुन्दर प्रयास
बधाई
आदरणीय रामशिरोमणि पाठक जी, प्रिय मित्र! उत्साह वर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार। सादर,
आदरणीया राजेश कुमारी जी, जी सर! आपकी बात से मैं पूर्णता सहमत हूं। लेकिन मुझे कम्प्यूटर ज्ञान कम होने के कारण ही डरता हूं कि कहीं जो है वह भी गायब न हो जाए, अक्सर ऐसा हो जाता है। फिरभी मैं कोशिश कर रहा हूं। आपके मार्गदर्शन एवं उत्साह वर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार। सादर,
आ0 अशोक कुमार रक्ताले जी, जी सर! आपकी बात से मैं पूर्णता सहमत हूं। आपके मार्गदर्शन हेतु आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार। सादर,
आ0 संदीप कुमार पटेल जी, जी आपने सही कहा है। आपका बहुत बहुत आभार। सादर,
आदरणीय केवल जी!सुन्दर प्रयास है.बधाई आपको
केवल प्रसाद जी सुधार के बाद काफी बेहतर हुई है कुण्डलिया प्रयास रत रहें दूसरे ध्यान रहे की कुंडलिया की शुरुआत ऐसे अक्षर से हो जिसमे दो दीर्घ आयें क्योंकि अंत उसी अक्षर से होना होता है चूंकि हँसी के ह में चन्द्र बिंदु होने से ह लघु हो गया है इस और ही संदीप जी ने ध्यान आकर्षित किया है आप अपनी ये रचना एडिट कर सकते हैं टिप्पणियाँ वहीँ रहेंगी दुबारा अप्रूव जल्दी ही हो जाएगा ,बहुत-बहुत बधाई आपको प्रकृति की सुन्दरता को कैद किया है आपने शब्दों में |
आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, अच्छा सुधार हुआ है. सतत प्रयास और भी सुधार कराएगा.बहुत बहुत आभार.बधाइयां
आदरणीय केवल जी सादर
रचनाकर्म में प्रयास रत रहने हेतु बधाई आपको
रचना के बारे में जो अशोक सर ने कहा उससे सहमत हूँ
तत एक बात
रोले के अंत में दो दीर्घ अनिवार्यतः होना ही चाहिए
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