रोज़ होती सड़क दुर्घटनायें
कभी ये, कभी वो
शिकार होते लोग
सब जानते हैं
समझते हैं
आज कोई
तो कल
हम भी हो सकते हैं शिकार
दुर्घटना तो आखिर दुर्घटना है
चलो मान लिया
गलती इसकी थी, या उसकी
जाँच का विषय है
पर घण्टों सड़क पर
तड़पती ज़िंदगी
मदद के लिए विनती करती
कभी इशारे से बुलाती
भीड़ से आस की उम्मीद लिए
हर बार आखिरी कोशिश करती
लाश में तब्दील होती ज़िंदगी
किसका दोष है ??
इंसानों का ?
या इंसानों के भेष में घूम रही
मशीनों का ....
Comment
आदरणीय,
सारस्वत जी पाठक जी ,संदीप जी एवं अशोक रक्ताले जी आप सब ने कविता के मर्म को सराहा बहुत शुक्रिया।
हम सब मशीनी युग के इंसान है और मशीनों के साथ रहते रहते हमारी सोच भी बादल गई है।
लोग पीड़ित के दर्द को न देखकर, किसी परेशानी में न पड़ जायें ये पहले सोचते है ।
अगर हम स्वम और कुछ लोगों की सोच भी बदल पाये तो मै समझूंगा मै अपने प्रयास में सफल हुआ ।
(वैसे प्रिन्ट मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से भी लोगों को समझाने की ज़रूरत है )
आदरणीय नादिर खान साहब सादर, लाख क़ानून कहे कुछ नहीं होगा किन्तु कोई सुनता नहीं है इसी का नतीजा है पीडीत सडकों पर ही दम तोड़ रहे हैं. सुन्दर मार्मिक रचना. बधाई.
बहुत सुन्दर आदरणीय
वाकई हकीकत तो कुछ ऐसी ही है
बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
हर बार आखिरी कोशिश करती
लाश में तब्दील होती ज़िंदगी////////////
किसका दोष है ??
इंसानों का ?
या इंसानों के भेष में घूम रही
मशीनों का ....///////// सटीक और सही सवाल उठाया है,आदरणीय आपने/////
मेरे विचार से लोगो को बताने के साथ साथ हमें स्वयं भी विचार करना चाहिए !मैंने देखा है लोग दूसरों को बहुत बताते है लेकिन स्वयं नहीं करते !!सादर
लो मान लिया
गलती इसकी थी, या उसकी
जाँच का विषय है
पर घण्टों सड़क पर
तड़पती ज़िंदगी
मदद के लिए विनती करती
कभी इशारे से बुलाती
भीड़ से आस की उम्मीद लिए
हर बार आखिरी कोशिश करती
लाश में तब्दील होती ज़िंदगी
किसका दोष है ??
इंसानों का ?
या इंसानों के भेष में घूम रही
मशीनों का ....
इंसानियत शायद ख़त्म हो गयी है ! बहुत सटीक और सही सवाल उठाया है आपने अपनी रचना में
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