तोहरे दुआरे मात, खड़े दोउ कर जोरे,
अब तो आप आइके, दरस दिखाइए |
तोहरी शरण आया, तेरा ये कपूत मात,
सेवक को मां अपनी, शरण लगाइए |
इक आस तोरी मात, दूजा को सहाई मोर,
अइसे न आप मोरी, सुधि बिसराइए |
बिपत जो आन पड़ी तुझको पुकारूं मातु,
आप ही अब आइके, पार मा लगाइए |
- बृजेश नीरज
Comment
आदरणीय रक्ताले साहब आपका आभार! आपकी संस्तुति ने मेरी हिम्मत बढ़ाई!
आदरणीय बृजेश नीरज जी सादर, बहुत सुन्दर घनाक्षरी नवरात्रि के अवसर पर माता को समर्पित सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय बागी जी इस सहृदयता से नंबर देने के लिए आपका आभार!
Ist Division Pass :-))))))
संदीप भाई आपका बहुत बहुत आभार!
आदरणीय बागी जी आपका आभार! इसलिए विशेष तौर पर कि आपके कारण एक और विधा मुझे सीखने को मिली।
आपके कहने का अर्थ मैं यह लगा सकता हूं कि पहली परीक्षा में मैं पास हो गया?
प्राची बहन आपका आभार! आदरणीय बागी जी के निर्देश पर मैंने घनाक्षरी पर प्रयास किया था। लगता है पहले प्रयास में मुझे पासिंग माक्र्स मिल गए।
बहुत ही सुन्दर घनाक्षरी आदरणीय बृजेश जी सादर बधाई स्वीकारें
घानाक्षरी छन्द पर बेहतर प्रयास हुआ है बृजेश भाई, टेक्नीक आपने पकड़ लिया है, यह रचना अच्छी बन पड़ी है, बहुत बहुत बधाई |
नवरात्र पर माँ को पुकारती सुन्दर घनाक्षरी
इक आस तोरी मात, दूजा को सहाई मोर,
अइसे न आप मोरी, सुधि बिसराइए |...........बहुत सुन्दर
हार्दिक बधाई आ० बृजेश कुमार जी
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