मेरे साजन घर ना आये , सूना सूना लागे | |
जब से छोड़ कर गये विदेश , घर में मन ना लागे | |
दिन में कहीं चैन ना आये , रतिया बीते जागे | |
उनके बिना कुछ ना सुहाये , नैनन निद्रा भागे | |
आकर चाँद आग बरसावे , साजन बिन तरसावे | |
कोयल दिल में आग लगावे , बुलबुल अगन बढ़ावे | |
लिख लिख ख़त मैं कबसे हारी , संदेसा ना आवे | |
आवन की मैं राह निहारूं , अँखिया अश्क बहावे | |
सासु ननदिया मिल समझावें , सुन सुन कर मैं हारी | |
कैसे भूल गये हैं साजन , जिन की थी में प्यारी | |
उन के बिना बन गयी जोगन , हँसती सखियाँ सारी | |
रो रो कर दिन रात गुजारूं , मैं किस्मत की मारी | |
जो पल छोड़ कहीं ना जाते , भूल गये वो कैसे | |
बिन पानी के मछली तडपे , तड़प रही मैं वैसे | |
दिल करता हैं उड़कर ढूढूं , मिल जाये वो जैसे | |
वर्मा गम मैं किससे बताऊँ , दिन अब बीते कैसे | |
श्याम नारायण वर्मा |
Comment
सुन्दर रचना आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी बहुत बहुत बधाई.
पिया के विछोह में तडपते हृदय के उदगारों की सुन्दर भावप्रधान अभिव्यक्ति...
हार्दिक बधाई
आदरणीय वर्मा जी, आपकी रचनायें अच्छी होती हैं, किन्तु रचनायें एक स्तर से ऊपर निकल नहीं पा रही हैं,कृपया विविधता लाने का प्रयास करें, कम ही लिखे किन्तु और बेहतर करने का प्रयास करें, आप कर सकते हैं, ऐसा मुझे विश्वास है । इस प्रस्तुति पर बधाई और शुभकामना प्रेषित है ।
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