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विवेक भाई, आपके कहे से सहमत हूँ , कुछ वैसी ही परिस्थितियों में इस कविता ने जन्म ली, आपकी टिप्पणी बहुमूल्य है, बहुत बहुत आभार ।
प्रिय आशीष नैथानी जी, कविता के भावों को सराहने और रचना पसंद करने हेतु आभार ।
उससे आँख जो मिलानी है..!
कविता का सम्पूर्ण भाव इन पंक्तियों में समाया हुआ है | आज का एक सच |
बढ़िया कविता आदरणीय बागी जी |
आपका बहुत बहुत आभार अमन कुमार जी ।
बहुमूल्य टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया डॉ नूतन गैरोला जी ।
हम सब को ही आंख मिलनी है या झूखानी है ,घर पर -बहार सब जगह !
आज के समाज का छिपा काला चेहरा .. कहाँ कहाँ छिपाए फिरेगा ... अपने घर मे नजर दो चार क्या करेगा ...
बहुत बहुत आभार आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी ।
उत्साहवर्धन हेतु ह्रदय से आभार स्वीकार करें आदरणीया रेखा जोशी जी ।
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