छोटी छोटी बातों पर
अनायास ही अनचाहे
मन मुटाव हो जाता है
दुराव हो जाता है
दूरी बढ़ जाती है
हम तिलमिला जाते हैं
मौन हो जाते हैं
अहम भाग जाता है
मन का यक्ष प्रश्न बार बार
झकझोरता है
कुरेदता है
हम बड़े हैं फले-फूले हैं
हम देते हैं पालते हैं
पोसते हैं
न जाने क्यों फिर लोग
हमे ही झुकाते हैं -नोचते हैं
वैमनस्य --मारते हैं पत्थर
कैसा संसार ??
और वो बिन बौर-आये
बिना फले -फूले
ना जाने कैसे -सब से
पाता दया है
रहमो करम पे
जिए चला जाता है
पाता दुलार !!
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माँ ने मन जांचा -आँका
पढ़ा मेरे चेहरे को -भांपा
नम आँखों से -सावन की बदली ने
आंचल से ढाका
फली हुयी डाली ही
सब ताकते हैं
उस पर ही प्यारे -सब
नजर -गडाते हैं
लटकते हैं -झुकाते हैं
पत्थर भी मारते हैं
अनचाहे -व्याकुल हो
तोड़ भी डालते हैं
रोते हैं -कोसते हैं
बहुत पछताते हैं
नहीं कोई वैमनस्य
ना कोई राग है
अन्तः में छुपा प्यारे
ढेर सारा
उसके प्रति प्यार हैं
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मन मेरा जाग गया
अहम कहीं भाग गया
टूटा-खड़ा हुआ मै
फिर से बौर-आया
हरा भरा फूल-फूल
सब को ललचाया
फिर वही नोंच खोंच
पत्थर की मार !
हंस- हंस -मुस्काता हूँ
पाता दुलार !
वासन्ती झोंको से
पिटता-पिटाता मै
झूले में झूल-झूल
बड़ा दुलराता हूँ
हंसता ही जाता हूँ
करता दुलार !!
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शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू यच पी
३०.३.१२ -४.४५-५.११ पूर्वाह्न
Comment
प्रिय अशोक भाई धन्यवाद और आभार माँ तो बहुत कुछ सोच समझ और वास्तविक स्थिति ही समझाती है न ..आभार आप का रचना को आप ने सराहा
वाह! क्या बात है.! माँ ने बिलकुल सही समझाया. जो मीठे फल देगा वही पत्थर भी खायेगा. बहुत सुन्दर रचना आदरणीय सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर' साहब.
आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत बहुत आभार प्रोत्साहन हेतु रचना आप के मन को प्रभावित कर सकी सुन हर्ष हुआ
प्यार भरे दुलार की बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री सुरेन्द्र कुमार भ्रमर जी
प्रिय केवल जी -रचनाएँ आप को सुन्दर लगी आप से प्रोत्साहन मिला सुन के ख़ुशी हुयी
प्रिय शिरोमणि जी -रचना आप को सुन्दर लगी आप से प्रोत्साहन मिला लिखना सार्थक रहा
प्रिय श्याम नारायण जी जय श्री राधे -रचना को आप ने समय दिया प्रोत्साहन मिला लिखना सार्थक रहा
आदरणीय अश्क जी जय श्री राधे -रचना आप के ह्रदय को प्रभावित कर सकी लिखना सार्थक रहा
आदरणीय भ्रमर जी, अतिसुन्दर रचनाएं। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर रचना ////हार्दिक बधाई आपको
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