फिर तुम्हारी याद में
इक पीर की माला बनायी ...
रूठना फिर मनाना
इक रीत है
हाँ हमारे बीच
अपनी प्रीत है
इसी पूजा में रहे
हम मग्न
तो आवाज आयी
फिर तुम्हारी याद में ...
एक अद्भुत
अलौकिक संगीत है
हाँ तुम्हारी याद
मेरी मीत है
ध्यान जो तेरा धरूँ
तो आँसुओं ने
झिर लगायी
फिर तुम्हारी याद में ....
योगेश्वर 'राग'
Comment
आदरणीय सौरव जी,
गुणीजनों ने जिस तरह से आपकी रचना पर अपने भाव दिये हैं, सुधार बताये हैं कि उससे हर नव-हस्ताक्षर को रक्स होगा.
आप उन परध्यान दें.
प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई.. .
उत्साह को बनाया आपने आदरणीय गणेश जी बागी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
आदरनीय अशोक कुमार रक्ताले जी आपने कविता में भावुकता को सराहा आपका बहुत बहुत आभार
आपने तो सारे बिखराव को बहुत प्रेम से समेत दिया ,आपका धन्यवाद आदरणीया डॉक्टर प्राची जी
आ० योगेश्वर जी
बहुत सुन्दर भावप्रवण गीत लिखा है आपने.. प्रिय के विरह की वेदना में भी मिठास को ही पाती इस रचना के लिए ह्रदय से बधाई.
फिर तुम्हारी याद में .........................प्रिय तुम्हारी याद में इक पीर की माला बनायी
इक पीर की माला बनायी
रूठना फिर मनाना
इक रीत है ..............................रूठना फिर मान जाना रीत है
हाँ हमारे बीच
अपनी प्रीत है ........................हाँ! हमारे बीच निश्छल प्रीत है
इसी पूजा में रहे
हम मग्न ............................मग्न पूजा में रमी हर श्वांस से आवाज आयी
तो आवाज आयी
फिर तुम्हारी याद में..................प्रिय तुम्हारी याद में इक पीर की माला बनायी
यदि इस तरह से कहा जाता तो..... कैसा रहता? अपने मत से अवगत कराइएगा
शुभकामनाएं
याद की भावुकता को बयान करती सुन्दर रचना आदरणीय योगेश्वर जी. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
//एक अद्भुत
अलौकिक संगीत है
हाँ तुम्हारी याद
मेरी मीत है//
वाह वाह, एक ससक्त रचना हुई है , बधाई स्वीकार हो ।
वाह बहुत खूब योगेश्वर राग जी! आदरणीय बृजेश जी सच कह रहे है, आपने तो सचमुच कवित्त से सुन्दर व्याख्या कर दी है
आप लिखतें रहे और प्रतिक्रियाओं पर गौर करतें रहे ...स्वमेव सुधार आएगा ....यह मंच हमारा और आपका ही है ...बहुत सारी शुभकामनायें ...लेखन जारी रक्खें ...
सादर गीतिका 'वेदिका'
योगेश्वर भाई हम सब यहां सीखने की प्रक्रिया में ही हैं। एक दूसरे की कमियां बताते हुए साथ में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं इसलिए ओबीओ पर रहते हुए आप निश्चित ही बहुत ऊचाइयों को प्राप्त करेंगे। आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी।
सादर!
योगेश्वर भाई जी आपने रचना की जो व्याख्या दी है वह अत्यधिक सुन्दर है। आप यूं समझें कि आपकी रचना से अधिक सुन्दर है। जितनी स्पष्टता और मधुरता आपकी व्याख्या में भरी है वह कविता में नजर नहीं आती। कविता में आपके भाव पूरी तरह उभर कर नहीं आ पाए हैं।
यह कविता संशोधन चाहती है। पाठक को यह कैसे स्पष्ट होगा कि आप किसकी आवाज सुन रहे हैं या पूजा कर रहे हैं। बिम्बों का प्रयोग कविता में होता है लेकिन वे बिम्ब किसी तारतम्य में होते हैं।
सादर!
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