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नियम : ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में .

 

प्रणय पवन बह, रस मन बरसत

बढ़त लहर जस, तन मन गद गद

चमक दमक बस, चलत नगर घर

पग पग हर पल, रहत मदन मद

 

मन भ्रमर चलत, उड़त गगन तक

इत उत भटकत, उठत बहत रह

प्रणय ललक वश, बहकत सम्हरत

चरफर महकत, चटक मटक रह

                 - बृजेश नीरज

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Comment by Ashok Kumar Raktale on April 28, 2013 at 9:35am

आदरणीय बृजेश नीरज जी सादर, सुन्दर डमरू घनाक्षरी रची है बहुत बहुत बधाई स्वीकारें. बिना मात्रा के छंद रचना बहुत जटिल कार्य है. आपने प्रशंसनीय छंद रचा है. दुसरे छंद में "सम्हरत" शायद उचित ना हो.गुरुजनों से अवश्य जानकारी कर लें.सादर. 

Comment by बृजेश नीरज on April 28, 2013 at 9:09am

आदरणीया कुन्ती जी आपका आभार!

Comment by coontee mukerji on April 27, 2013 at 11:58am

बहुत सुंदर ,  फिर वो दिन याद आ गये.नीरज जी .   सादर / कुंती .

Comment by बृजेश नीरज on April 26, 2013 at 10:14pm

आदरणीय मनोज भाई आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on April 26, 2013 at 10:13pm

आदरणीय प्रदीप जी, आपका आभार! आपकी टिप्पणी सदैव मेरे लिए ऊर्जा का स्रोत होती है।

Comment by manoj shukla on April 26, 2013 at 8:36pm
बहुत ही सुन्दर रचना बधाई स्वीकार करें आदर्णीय
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 3:39pm

आदरणीय ब्रजेश जी 

सुन्दर भाव से सजी रचना हेतु हार्दिक बधाई, 

सस्नेह 

Comment by बृजेश नीरज on April 26, 2013 at 2:57pm

आदरणीया कल्पना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by कल्पना रामानी on April 26, 2013 at 1:45pm

बहुत सुंदर ....

Comment by Shyam Narain Verma on April 26, 2013 at 1:14pm

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