For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुमको जो प्रतिकूल लगे हैं
वे हमको अनुकूल लगे
और तुम्हें अनुकूल लगे जो
वे हमको प्रतिकूल लगे...............

हम यायावर,जान रहे हैं
फूल कहाँ पर काँटे हैं
तुमने संचय किया न जितना
हम तो उतना बाँटे हैं
तुम नत मस्तक जिसके आगे
हमको वे सब धूल लगे.............

तुम ठुकराते,हम अपनाते
फर्क यही हम दोनों में
कंकर पत्थर पर हम सोते
तुम मखमली बिछौनों में
भौतिक सुख हैं नाग विषैले
चन्दन हमें बबूल लगे..................

आये थे क्या लेकर,सोचो
क्या लेकर तुम जाओगे
जो कुछ नामे यहाँ करोगे
जमा वहाँ तुम पाओगे
जीवन की सारी सच्चाई
तुमको सदा फिजूल लगे..................

मेरा-मेरा कह कर तुमने
जग को किया पराया है
कौन हितैषी,कौन मित्र है
तुम्हें समझ ना आया है
तुमने मारे जितने पत्थर
हमको सारे फूल लगे ..............

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
(स्वरचित व अप्रकाशित)

Views: 1462

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2013 at 6:29pm

आदरणीय भाई अशोक कुमार रक्ताले जी, उज्जैनी की पुण्य धरा से स्नेह-सुमन मिले, बस प्रसाद ही मिल गया." ईश्वर की कोर बैंकिंग" यह प्रयोग मन को मुग्ध कर गया. भाई अशोक जी मूलत: गीतकार ही हूँ.छंदों में लिखना तो ओबीओ में अभी-अभी ही सीखा है. गज़ल लिखनी नहीं आती.धुन के अनुमान से प्रयास कर लेता हूँ.

ओबीओ परिवार से जुड़ने के बाद ही मात्रा गणना, गण वगैरह सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.कार्य-क्षेत्र की व्यस्तता समयाभाव का प्रमुख कारक है. गीत के लिये मन में कोमल भाव जागने चाहिये. लग रहा है कि मन की वह कोमलता धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है. आप सभी की स्नेह वर्षा के कारण थोड़ी-बहुत कोमलता अभी बाकी है.

आपको गीत पसंद आया. मन प्रसन्न हो गया. आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2013 at 6:13pm

आदरेया कुन्ती मुकर्जी जी, आपका स्नेह बना रहे, आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2013 at 6:11pm

आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी, हम आपको अनुकूल लगे, मन तृप्त हो गया. आपके प्रेम ने हमें सदैव ही प्रोत्साहित किया है.आपकी उपस्थिति नवीन उर्जा का संचार करती है.सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2013 at 6:05pm

आदरेया कल्पना रामानी जी, आपके प्रोत्साहन हेतु आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2013 at 6:03pm

अय हय अय हय अय, आदरणीय सौरभ पाण्डेय भाई जी, आपकी पारखी दृष्टि और आपके विचार मेरे लिये किसी "कसौटी" से कम नहीं हैं. इनका अनुमोदन मिल जाने से लगता है कि 24 कैरेट का प्रमाण-पत्र मिल गया है. सृजन एवम् मंथन के दौरान उत्पन्न तपन स्पर्श-मात्र से शीतल हो जाती है.आपकी प्रतिक्रिया पढ़ने के बाद लगता है, अरे ! यह तो अच्छा लिख गया है.

"नामे" शब्द का प्रयोग मेरे एक पुराने गीत में भी हुआ है. मेरे ब्लॉग में प्रकाशित होने के कारण इसे ओबीओ में प्रस्तुत नहीं कर पाऊंगा किंतु प्रासंगिक होने के कारण दो-चार पंक्तियों का उल्लेख करना चाहूंगा :-

ये गठरी संग न जायेगी, क्यों बोझ बढ़ाते जाता है
इस पार नहीं लेखा-जोखा, उस पार ही तेरा खाता है.
गठरी में जितना जोड़ेगा, नामे होगा उस खाते में
गठरी से जितना बाँटेगा, उतना पायेगा जाते में

दोहरी प्रविष्टि के लेखे को, क्यों यार ! समझ न पाता है..

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2013 at 5:37pm

आदरणीय विजय निकोरे जी, हृदय से धन्यवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2013 at 5:36pm

आदरणीय मनोज शुक्ल जी, आपका प्रोत्साह्न सदा मिल्ता रहे, बहुत-बहुत आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2013 at 5:34pm

आदरेया गीतिका "वेदिका" जी, आपकी स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया हेतु आभार........

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 4, 2013 at 11:22am

वाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह आनंद आ गया, आपने अपने नैतिक जीवन के कार्यों का बहुत ही सुन्दरता से वर्णन किया है. हर पंक्ति कुछ न कुछ सन्देश दे रही हैं. इस शानदार रचना पर मेरी ओर से भूरि भूरि बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2013 at 9:50am

प्रिय श्री केवल प्रसाद जी, आपकी बधाइयों के लिये हृदय से धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service