For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आईना देख कर
हो गई बावरी
नैन रतनार से
देह भी मरमरी ||


कुछ कहें सुन्दरी
कुछ कहें है परी
सुन के ऐसा लगे
ज्यों बजी बंसरी ||


मस्त अंगड़ाइयाँ
उफ् अदा मदभरी
कुंतलों में बसी
थी घटा साँवरी ||


एक दिन क्या बताऊँ
मैं कैसी डरी
खत्म जैसे हुई
सारी जादूगरी ||


रूप की फुलझरी
कर गई मसखरी
पीत पड़ने लगी
पत्तियाँ सब हरी ||


झुर्रियाँ कह गईं
आज बातें खरी
आईना रह गई
मैं धरी की धरी ||

(मौलिक व अप्रकाशित)

अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Views: 644

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2013 at 12:07am

इस व्यवस्था को जीवन कहते हैं ! .. :-))))

वाह !

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2013 at 5:33pm

रूप की फुलझरी
कर गई मसखरी
पीत पड़ने लगी
पत्तियाँ सब हरी ||

 जीवन की यही सच्चाई है बहुत सुन्दर प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई अरुण निगम जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 5, 2013 at 12:04pm

आदरणीय गुरुदेव श्री वाह आपकी यह कला भी मन मोह गई, छोटी छोटी पंक्तियाँ किन्तु भाव गंभीर कर रही हैं, क्या कहने सरलता और  सुन्दरता से सुशोभित लाजवाब लेखन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by ram shiromani pathak on June 4, 2013 at 6:33pm

वाह वाह आदरणीय अरुण जी,सुन्दर पंक्तियां//हार्दिक बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 4, 2013 at 4:58pm

वाह वाह आदरणीय सर जी सादर प्रणाम 

ग़ज़ब का लेखन 

सुन्दर सहज और शानदार 

टूटा फूटा हो भले, दर्पण बोले सांच 

चाटुकारी होय नहीं , चाहे आये आंच 

बधाई हो इस अद्भुत रचना हेतु 

Comment by विजय मिश्र on June 4, 2013 at 1:03pm
अरुणजी ,इस हृदयस्पर्शी प्रस्तुति के लिए बधाई -
"झुर्रियाँ कह गईं
आज बातें खरी
आईना रह गई
मैं धरी की धरी ||"--- कितनी सहजता से चिंतन केलिए विवश कर देते हैं .सुन्दर .
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 4, 2013 at 12:35pm

सहज सुन्दर शब्द प्रेम-निर्झर की कल-कल में विभोर कर गये आदरणीय! श्रद्धेय आपकी लेखनी को नमन है! सादर,

Comment by रविकर on June 4, 2013 at 11:17am

 वाह वाह वाह-

शुभकामनायें आदरणीय-

 

आई आई सामने, कुदरत का आईन । 

आकर्षक है आईना, दीख रहा कवि दीन ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 4, 2013 at 10:51am
आदरणीय..अरुण जी, बहुत खूब..बेहतरीन पंक्तियां,, क्या खूब आपने जीवन की वास्तविकता बतलाई है.."मस्त अंगड़ाईयां उफ् अदा मदभरी, कुंतलों में बसी थी घटा साँवरी! ....हार्दिक बधाई
Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2013 at 11:11pm

रूप की फुलझरी
कर गई मसखरी
पीत पड़ने लगी
पत्तियाँ सब हरी...

वाह !! बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
14 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
15 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
16 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
21 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service