For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुमको जो प्रतिकूल लगे हैं
वे हमको अनुकूल लगे
और तुम्हें अनुकूल लगे जो
वे हमको प्रतिकूल लगे...............

हम यायावर,जान रहे हैं
फूल कहाँ पर काँटे हैं
तुमने संचय किया न जितना
हम तो उतना बाँटे हैं
तुम नत मस्तक जिसके आगे
हमको वे सब धूल लगे.............

तुम ठुकराते,हम अपनाते
फर्क यही हम दोनों में
कंकर पत्थर पर हम सोते
तुम मखमली बिछौनों में
भौतिक सुख हैं नाग विषैले
चन्दन हमें बबूल लगे..................

आये थे क्या लेकर,सोचो
क्या लेकर तुम जाओगे
जो कुछ नामे यहाँ करोगे
जमा वहाँ तुम पाओगे
जीवन की सारी सच्चाई
तुमको सदा फिजूल लगे..................

मेरा-मेरा कह कर तुमने
जग को किया पराया है
कौन हितैषी,कौन मित्र है
तुम्हें समझ ना आया है
तुमने मारे जितने पत्थर
हमको सारे फूल लगे ..............

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
(स्वरचित व अप्रकाशित)

Views: 1465

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on June 4, 2013 at 4:01pm
आदरणीय अरुण जी आपकी भावाभ्यक्ति प्रशंसनीय है।
सादर बधाई स्वीकारें
Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:17pm

बहुत खूब अरुण जी 

बहुत ही उम्दा और सटीक कविता 

दिल को छू लेने वाली ॥ 

Comment by dheerendra singh bhadauriya on May 31, 2013 at 9:50am

आये थे क्या लेकर,सोचो
क्या लेकर तुम जाओगे
जो कुछ नामे यहाँ करोगे
जमा वहाँ तुम पाओगे
जीवन की सारी सच्चाई
तुमको सदा फिजूल लगे..

वाह वाह !!! बहुत उम्दा ,सच्चाई भरी प्रस्तुति,,,,

Comment by Sarita Bhatia on May 31, 2013 at 9:45am

संदेशात्मक प्रेरणात्मक रचना के लिए बधाई स्वीकारें 

Comment by shalini rastogi on May 12, 2013 at 12:46pm

तुम ठुकराते,हम अपनाते
फर्क यही हम दोनों में... अरुण जी , बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ... परिदृश्य एक होता है परन्तु परिवेक्षण अपना अपना होता है ... इसी अन्तर को बहुत प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है आपने...

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 12, 2013 at 6:25am

आये थे क्या लेकर,सोचो
क्या लेकर तुम जाओगे
जो कुछ नामे यहाँ करोगे
जमा वहाँ तुम पाओगे
जीवन की सारी सच्चाई
तुमको सदा फिजूल लगे..................

वैसे तो सभी पंक्तियाँ ही अनुकूल हैं फिर भी

जो जीवन की सच्चाई है, वे क्यों हमसबको शूल लगे!

Comment by seema agrawal on May 5, 2013 at 8:05pm

क्या कहने अरुण जी आपकी रचनात्मक उर्जा और कौशल की कायल हूँ ,जितनी सहजता उतना ही गाम्भीर्य भाव और कथ्य में ..शिल्प के बेजोड़ फेविकोल से बंधा हुया आपकी ये रचना ऐसा लगा जैसे एक बंजारा अपनी मस्ती में गीत गाता चला जा रहा हो कुछ कुछ पंक्यियाँ तो बिल्कुल मन की आर-पार जैसे ......

भौतिक सुख हैं नाग विषैले
चन्दन हमें बबूल लगे

जो कुछ नामे यहाँ करोगे
जमा वहाँ तुम पाओगे

तुमने मारे जितने पत्थर
हमको सारे फूल लगे

भौतिक सुख हैं नाग विषैले

चन्दन हमें बबूल लगे........

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए
सीधी सुन्दर और सहज शब्दों में कही गयी रचनाएँ भी कितनी प्रभावशाली हो सकतीं हैं उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है ये गीत 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 5, 2013 at 3:40pm

बहुत सुन्दर गीत लिखा अरुण निगम जी ,एक न एक दिन अच्छाई की जीत जरूर होती है ये सद विचार लेकर जो चला वो  तर गया । बहुत- बहुत बधाई इस गीत ले लिए |

Comment by बृजेश नीरज on May 4, 2013 at 6:42pm

बहुत ही सुन्दर, अप्रतिम रचना! शब्द कम होंगे तारीफ के लिए। परिस्थितियों को जिस तरह प्रवाह में आपने पिरोया है उसका कोई सानी नहीं। आपको बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2013 at 6:33pm

प्रिय अरुण अनंत, बहुत-बहुत प्यार. मेरा संदेश पहुँचा, गीत सफल हो गया. आभार....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
17 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
17 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
17 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
18 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
23 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service