एक बीते वक़्त सा
कुछ भूल जाना अच्छा होगा
जिसके दामन में दुःख के सिवा
मन को भिगोते
गलतफहमियो के घने बादल,
शिकायतों की बिजलियां
गरजते - गडगडाते काले
शक के भरे बरसने को
बेकाबू सवालों के मेघ
और कुछ डरावनी रातें होंगी;
भूल जाना कुछ कड़वे शब्द
उनकी तपिश आँखों को
और कभी जो दिल को
जलाती रही ओस से भीगी,
ठंडी रातों में भी और
दर्द देती रही मेरे शांत पड़े
कानो को जो अकसर,
दर्द से कराह जाते हैं
तड़प जाते है इतने कि मैं बस
अपने कानो पर हाथ रख लूँ और
जोर से चिल्लाऊं
चुप हो जाओ - चुप हो जाओ;
दिन, दिन से रात और
रात से न जाने कितनी रातें और
कितने दिन-रात समय को कोसा
खुद को कोसा,
भूल जा ये कह कर आंसू पोछे
उसको सोचा खुद को सोचा,
अपनी परछाईयों को टटोला
अपने निशान देखे लेकिन
कुछ न मिला
बस तन्हाई मिली - चुप्पी मिली;
मैं तो थी ही कोरी साफ़ चंचल मन की
न छल जानूं - न चाल
मैं बहते पानी सी निर्मल पावन,
अपने मन के दीये से सबको
एक ही उजाले से रोशन कर
देखा करती थी;
फिर मैं क्यूँ सोचूं तुझको
मुझ संग कोई नहीं है मेल;
तू सफ़र में छूटा बेकार सा पुराना बस्ता
क्यूँ तुझको याद करू मैं
क्यूँ समय बरबाद करू मैं
भूल जाऊं तुझे कुछ बिगड़ी बात समझ के;
नहीं तू मंजिल किसी की
जो हो भी नही सकती राह किसी की
भूल जाऊंगी तुझे - अब मैं भूल जाऊंगी.....
Comment
Laxman prasad ladiwala जी आपके विचारों से सहमत हूँ कोशिश रहेगी .......शुक्रिया ....
kewal prasad जी आभार आपका .....
Coontee mukerji जी बहुत गहनता से आप ने समझा ......शुक्रगुजार हूँ आपकी .....सराहते रहियेगा.....
manoj shukla जी एवं अरुन शर्मा 'अनन्त' जी पसंदगी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया......
PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA सर .....आपकी सरहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
VISHAAL CHARCHCHIT धन्यवाद आपका अपने पसंद किया सराहते रहिये शुक्रिया ...
vijay nikore जी बहुत बहुत आभारी हूँ आपकी ह्रदय से आपका शुक्रिया ......
अत्यंत भावुक अभिव्यक्ति.....सराहनीय है......हार्दिक बधाई स्वीकारें !!!!
आदरणीया प्रियन्का जी:
सुन्दर बिम्बों और प्रतीकों से युक्त इस रचना के लिई शत-शत बधाई।
ऐसी ही कविताएँ और भेजें।
सादर,
विजय निकोर
ह्रदय के भीतर विद्यमान वेदना को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने, बधाई स्वीकारें आदरणीया
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