मई महीने के दूसरे रविवार को
"मातृ दिवस"
मनाया जाता है
बस एक दिन.....
माँ का सम्मान किया जाता है
क्या माँ..........
वो इसी एक दिन.......
के लिये होती है
बाकी के....
तीन सौ चौंसठ दिन
वो शायद
चाकरी करती है....
अपने बच्चों की...
अपने पति की..
निःस्वार्थ भावना लिये
और देर रात...
दुबक जाती है...
घर के किसी कोने में
और संचय करती है
बल...
आने वाले कल के लिये
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
स्त्री विमर्श पर एक सार्थक प्रस्तुति !
और देर रात...
दुबक जाती है...
घर के किसी कोने में
और संचय करती है
बल...
आने वाले कल के लिये ...
माँ तो अनमोल रत्न है ।
सुन्दर रचना
आदरणीया यशोदा जी, सुन्दर और सटीक बात! मां वह होती है जो अपने लिए कुछ नही चाहती और वह अपना सर्वस्व अपने बच्चो पर निछावर कर देती है। और... रात के अंधेरों की तरह निढाल किसी कोने में....कल के उज्ज्वल भविष्य के लिए ही बल संचयन हेतु सपने देखती है। मां को श्रध्दा सुमन! हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
आदरणीय यशोदा दिग्विजय अग्रवाल जी, बहुत बढ़िया सवाल उठाया है आपने. पर इसका एक दूसरा पहलू भी है कि इस दिन हम एक दूसरे की माँ से भी मिल लेते हैं. वरना हमेशा तो अपनी ही पड़ी रहती है.
मां के सम्मोहक व्यक्तित्व से जुडे अनगिनत पहलुओं में से एक को छूती सराहनीय रचना.........!!!!
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
आप सभी स्नेही मित्रों का हृदय से आभार
माँ के लिये एक दिन नही एक साल नही एक जन्म नही बल्कि जन्म दर जन्म माँ का गुणगान करो तब भी कम है ....... बधाई हो
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