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दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं

तमाम विसंगतियों के विरोध में एक ताज़ा ग़ज़ल .....


दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं 
फैसले को ‘खाप’ की कुछ पगड़ियाँ आने लगीं 

किसको फुर्सत है भला, वो ख़्वाब देखे चाँद का

अब सभी के ख़्वाब में जब रोटियाँ आने लगीं

आरियाँ खुश थीं कि बस दो –चार दिन की बात है 
सूखते पीपल पे फिर से पत्तियाँ आने लगीं

 

उम्र फिर गुज़रेगी शायद राम की वनवास में

दासियों के फेर में फिर रानियाँ आने लगीं

 

बीच दरिया में न जाने सानिहा क्या हो गया

साहिलों पर खुदकुशी को मछलियाँ आने लगीं

 

है हवस का दौर यह, इंसानियत है शर्मसार

आज हैवानों की ज़द में बच्चियाँ आने लगीं

 

यूँ शहादत पर सियासत का नया फैशन दिखा

शोक जतलाने को नीली बत्तियाँ आने लगीं

 

हमने सच को सच कहा था, और फिर ये भी हुआ

बौखला कर कुछ लबों पर गालियाँ आने लगीं

 

शाहज़ादों को स्वयंवर जीतने की क्या गरज़

जब अँधेरे मुंह महल में दासियाँ आने लगीं

 

आज कह के कल मुकर जाने को सब तय्यार हैं

शाइरों में भी सियासी खूबियाँ आने लगीं

 

उसने अपने ख़्वाब के किस्से सुनाये थे हमें

और हमारे ख़्वाब में भी तितलियाँ आने लगीं  



- वीनस केसरी 
मौलिक व अप्रकाशित 

 

Views: 1350

Comment

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Comment by वीनस केसरी on May 8, 2013 at 1:42pm

बसंत नेमा जी आपका ह्रदय से आभारी हूँ 

Comment by वीनस केसरी on May 8, 2013 at 1:41pm

कवि दीपेन्द्र जी,
ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए आपके पास शब्द नहीं हैं यही तो सबसे बड़ी तारीफ़ है :))))))))

बहुत शुक्रिया 

Comment by वीनस केसरी on May 8, 2013 at 1:39pm

सुलभ भाई जी, ओबीओ मंच पर आपसे दाद पा कर अभिभूत हूँ 

थोडा सक्रियता बढाईये तो मजा आये ....

Comment by वीनस केसरी on May 8, 2013 at 1:36pm

सौरभ जी ग़ज़ल को आपका अनुमोदन मुझे भी संतुष्ट करता गया ...

सादर 

Comment by वीनस केसरी on May 8, 2013 at 1:35pm

श्याम नारायण वर्मा जी आपका हार्दिक आभार 

Comment by वीनस केसरी on May 8, 2013 at 1:34pm

कल्पना जी 

ग़ज़ल का हर शेर आपको पसंद आया यह मेरे लिए भी खुशी की बात है आपका हार्दिक धन्यवाद 

Comment by वीनस केसरी on May 8, 2013 at 1:33pm

कवि राज बुन्देली जी इस हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Abhinav Arun on May 8, 2013 at 9:01am

इस ग़ज़ल की प्रशस्ति के अनुकूल शब्द नहीं श्री वीनस जी , ये उस श्रेणी की ग़ज़ल हुई है जिसके लिए कहते है  ..ग़ज़ल के फूल कहाँ रोज़ रोज़ खिलते है ...और जिगर का खून भी चाहिए असर के लिए ...फूल खिले हैं ..और बात दिल से निकल कर पाठक के ह्रदय में मुहावरों सी बैठ जा रही है ... हर शेर अद्भुत ..अप्रतिम ! रोज़मर्रा के बोलचाल में बार बार  उद्धृत किये जाने योग्य !!! उम्दा ...माँ शारदे की कृपा इसी प्रकार आप पर बनी रहे !!! आमीन !!!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 8, 2013 at 8:54am

//दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं 
फैसले को ‘खाप’ की कुछ पगड़ियाँ आने लगीं//  वाह वाह, मतला आपकी ग़ज़ल के मिजाज़ को बयां करता है, मुहब्बत पर, दकियानूसी विचारधाराओं को आपने आड़े हाथ लिया है, बहुत बढ़िया ।  

//किसको फुर्सत है भला, वो ख़्वाब देखे चाँद का

अब सभी के ख़्वाब में जब रोटियाँ आने लगीं// सही है भाई जब तक पेट नहीं भरता, कुछ नहीं सूझता, बहुत पहले पढ़ा हुआ "गेहूं और गुलाब" याद आ गया । बढ़िया शेर । 

//आरियाँ खुश थीं कि बस दो –चार दिन की बात है 
सूखते पीपल पे फिर से पत्तियाँ आने लगीं// यह शेर भी बढ़िया है, इन्तजार का फल मीठा न हो सका :-)

 

//उम्र फिर गुज़रेगी शायद राम की वनवास में

दासियों के फेर में फिर रानियाँ आने लगीं// उला राम पर specified हो गया है, यदि इसको generalized way में कहाँ जाता तो और बढ़िया शेर हो सकता था । 

//बीच दरिया में न जाने सानिहा क्या हो गया

साहिलों पर खुदकुशी को मछलियाँ आने लगीं// आय हाय हाय,क्या बात है, बहुत ही उम्दा कहन । 

 

//है हवस का दौर यह, इंसानियत है शर्मसार

आज हैवानों की ज़द में बच्चियाँ आने लगीं// इस सामयिक शेर पर क्या कहना, आँखे नम करने के लिए काफी है । 

 

//यूँ शहादत पर सियासत का नया फैशन दिखा

शोक जतलाने को नीली बत्तियाँ आने लगीं// नीली बत्ती सियासी लोगो के लिए नहीं होती, एक बार गौर करें ।  

 

//हमने सच को सच कहा था, और फिर ये भी हुआ

बौखला कर कुछ लबों पर गालियाँ आने लगीं// होता है होता है, सच कहने वालों को गलियों की परवाह नहीं होनी चाहिए, बढ़िया शेर । 

 

//शाहज़ादों को स्वयंवर जीतने की क्या गरज़

जब अँधेरे मुंह महल में दासियाँ आने लगीं// वाह वाह, क्या बात है, बहुत ही गहरा तंज है, इस शेर ने कईयों को एक झटके में दबोच लिया है । 

 

//आज कह के कल मुकर जाने को सब तय्यार हैं

शाइरों में भी सियासी खूबियाँ आने लगीं// वायुमंडल ही प्रदूषित है भाई, कुछ तो प्रभाव पड़ेगा ही । बहुत बढ़िया । 

 

//उसने अपने ख़्वाब के किस्से सुनाये थे हमें

और हमारे ख़्वाब में भी तितलियाँ आने लगीं// किस्सा सुनाना और सुनना दोनों सार्थक हुआ, अच्छा है । 

बहुत ही प्यारी और उम्दा गज़ल्विनस जी, बहुत बहुत बधाई सिकार करें ।  

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2013 at 8:04am

आदरणीय वीनस जी सादर बहुत ही सुन्दर गजल गाने लगो तो गीत सी वाह! और वर्तमान परिदृश्यों को क्या ही खूबसूरती से उठाया है की बस मजा आ गया है 

शाहज़ादों को स्वयंवर जीतने की क्या गरज़

जब अँधेरे मुंह महल में दासियाँ आने लगीं..........और ये शेर तो विशेष दाद देने का आग्रह कर रहा है. बहुत खूब.

भरपूर दिली दाद कुबुलें.

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