तमाम विसंगतियों के विरोध में एक ताज़ा ग़ज़ल .....
दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं
फैसले को ‘खाप’ की कुछ पगड़ियाँ आने लगीं
किसको फुर्सत है भला, वो ख़्वाब देखे चाँद का
अब सभी के ख़्वाब में जब रोटियाँ आने लगीं
आरियाँ खुश थीं कि बस दो –चार दिन की बात है
सूखते पीपल पे फिर से पत्तियाँ आने लगीं
उम्र फिर गुज़रेगी शायद राम की वनवास में
दासियों के फेर में फिर रानियाँ आने लगीं
बीच दरिया में न जाने सानिहा क्या हो गया
साहिलों पर खुदकुशी को मछलियाँ आने लगीं
है हवस का दौर यह, इंसानियत है शर्मसार
आज हैवानों की ज़द में बच्चियाँ आने लगीं
यूँ शहादत पर सियासत का नया फैशन दिखा
शोक जतलाने को नीली बत्तियाँ आने लगीं
हमने सच को सच कहा था, और फिर ये भी हुआ
बौखला कर कुछ लबों पर गालियाँ आने लगीं
शाहज़ादों को स्वयंवर जीतने की क्या गरज़
जब अँधेरे मुंह महल में दासियाँ आने लगीं
आज कह के कल मुकर जाने को सब तय्यार हैं
शाइरों में भी सियासी खूबियाँ आने लगीं
उसने अपने ख़्वाब के किस्से सुनाये थे हमें
और हमारे ख़्वाब में भी तितलियाँ आने लगीं
- वीनस केसरी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बसंत नेमा जी आपका ह्रदय से आभारी हूँ
कवि दीपेन्द्र जी,
ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए आपके पास शब्द नहीं हैं यही तो सबसे बड़ी तारीफ़ है :))))))))
बहुत शुक्रिया
सुलभ भाई जी, ओबीओ मंच पर आपसे दाद पा कर अभिभूत हूँ
थोडा सक्रियता बढाईये तो मजा आये ....
सौरभ जी ग़ज़ल को आपका अनुमोदन मुझे भी संतुष्ट करता गया ...
सादर
श्याम नारायण वर्मा जी आपका हार्दिक आभार
कल्पना जी
ग़ज़ल का हर शेर आपको पसंद आया यह मेरे लिए भी खुशी की बात है आपका हार्दिक धन्यवाद
कवि राज बुन्देली जी इस हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
इस ग़ज़ल की प्रशस्ति के अनुकूल शब्द नहीं श्री वीनस जी , ये उस श्रेणी की ग़ज़ल हुई है जिसके लिए कहते है ..ग़ज़ल के फूल कहाँ रोज़ रोज़ खिलते है ...और जिगर का खून भी चाहिए असर के लिए ...फूल खिले हैं ..और बात दिल से निकल कर पाठक के ह्रदय में मुहावरों सी बैठ जा रही है ... हर शेर अद्भुत ..अप्रतिम ! रोज़मर्रा के बोलचाल में बार बार उद्धृत किये जाने योग्य !!! उम्दा ...माँ शारदे की कृपा इसी प्रकार आप पर बनी रहे !!! आमीन !!!
//दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं
फैसले को ‘खाप’ की कुछ पगड़ियाँ आने लगीं// वाह वाह, मतला आपकी ग़ज़ल के मिजाज़ को बयां करता है, मुहब्बत पर, दकियानूसी विचारधाराओं को आपने आड़े हाथ लिया है, बहुत बढ़िया ।
//किसको फुर्सत है भला, वो ख़्वाब देखे चाँद का
अब सभी के ख़्वाब में जब रोटियाँ आने लगीं// सही है भाई जब तक पेट नहीं भरता, कुछ नहीं सूझता, बहुत पहले पढ़ा हुआ "गेहूं और गुलाब" याद आ गया । बढ़िया शेर ।
//आरियाँ खुश थीं कि बस दो –चार दिन की बात है
सूखते पीपल पे फिर से पत्तियाँ आने लगीं// यह शेर भी बढ़िया है, इन्तजार का फल मीठा न हो सका :-)
//उम्र फिर गुज़रेगी शायद राम की वनवास में
दासियों के फेर में फिर रानियाँ आने लगीं// उला राम पर specified हो गया है, यदि इसको generalized way में कहाँ जाता तो और बढ़िया शेर हो सकता था ।
//बीच दरिया में न जाने सानिहा क्या हो गया
साहिलों पर खुदकुशी को मछलियाँ आने लगीं// आय हाय हाय,क्या बात है, बहुत ही उम्दा कहन ।
//है हवस का दौर यह, इंसानियत है शर्मसार
आज हैवानों की ज़द में बच्चियाँ आने लगीं// इस सामयिक शेर पर क्या कहना, आँखे नम करने के लिए काफी है ।
//यूँ शहादत पर सियासत का नया फैशन दिखा
शोक जतलाने को नीली बत्तियाँ आने लगीं// नीली बत्ती सियासी लोगो के लिए नहीं होती, एक बार गौर करें ।
//हमने सच को सच कहा था, और फिर ये भी हुआ
बौखला कर कुछ लबों पर गालियाँ आने लगीं// होता है होता है, सच कहने वालों को गलियों की परवाह नहीं होनी चाहिए, बढ़िया शेर ।
//शाहज़ादों को स्वयंवर जीतने की क्या गरज़
जब अँधेरे मुंह महल में दासियाँ आने लगीं// वाह वाह, क्या बात है, बहुत ही गहरा तंज है, इस शेर ने कईयों को एक झटके में दबोच लिया है ।
//आज कह के कल मुकर जाने को सब तय्यार हैं
शाइरों में भी सियासी खूबियाँ आने लगीं// वायुमंडल ही प्रदूषित है भाई, कुछ तो प्रभाव पड़ेगा ही । बहुत बढ़िया ।
//उसने अपने ख़्वाब के किस्से सुनाये थे हमें
और हमारे ख़्वाब में भी तितलियाँ आने लगीं// किस्सा सुनाना और सुनना दोनों सार्थक हुआ, अच्छा है ।
बहुत ही प्यारी और उम्दा गज़ल्विनस जी, बहुत बहुत बधाई सिकार करें ।
आदरणीय वीनस जी सादर बहुत ही सुन्दर गजल गाने लगो तो गीत सी वाह! और वर्तमान परिदृश्यों को क्या ही खूबसूरती से उठाया है की बस मजा आ गया है
शाहज़ादों को स्वयंवर जीतने की क्या गरज़
जब अँधेरे मुंह महल में दासियाँ आने लगीं..........और ये शेर तो विशेष दाद देने का आग्रह कर रहा है. बहुत खूब.
भरपूर दिली दाद कुबुलें.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online