परेशां है समंदर तिश्नगी से
मिलेगा क्या मगर इसको नदी से
अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे
कमाया है जो हमने मुफलिसी से
पुराना मस्अला ये तीरगी का
कभी क्या हल भी होगा रोशनी से
यहीं तो खुद से खा जाता हूँ धोका
निभाना चाहता हूँ मैं सभी से
नदी वाला तिलिस्मी ख़्वाब टूटा
भरा बैठा हूँ अब मैं तिश्नगी से
भुला बैठे जो रस्ता उस गली का
गुज़रना हो गया किस किस गली से
खुशामद भर है जो महबूब की तो,
मुझे आजिज समझिए शाइरी से
पुराना है मेरा लहज़ा यकीनन
मगर बरता है किस शाइस्तगी से
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
vijay nikore ji HARDIK AABHAR
बहुत ही उम्दा गज़ल के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
भावना जी,
हार्दिक आभारी हूँ
भुला बैठे जो रस्ता उस गली का
गुज़रना हो गया किस किस गली से..............पुराना है मेरा लहज़ा यकीनन
मगर बरता है किस शाइस्तगी से........SADAA KI TARAH UNMDAA SHER वीनस केसरी JI ....BADHAAI .......
dr. prachi ji dhanyvaad
खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय वीनस जी
ये दो शेर खास पसंद आये..
यहीं तो खुद से खा जाता हूँ धोका
निभाना चाहता हूँ मैं सभी से
भुला बैठे जो रस्ता उस गली का
गुज़रना हो गया किस किस गली से
सादर.
श्याम जी, सौरभ जी, प्रदीप जी, केवल जी, अशोक जी,
ग़ज़ल को अपना बहुमूल्य समय दे कर आशिर्वचन से अभिसिंचित करने हेतु आप सभी का हार्दिक आभारी हूँ
सादर
यहीं तो खुद से खा जाता हूँ धोका
निभाना चाहता हूँ मैं सभी से ............वाह! बहुत बढ़िया कहा है.
सादर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय वीनस जी सुन्दर गजल पर.
आदरणीय वीनस जी, अतिसुन्दर! लाजवाब शे‘र । कितनी सादगी से बयां कि ’पुराना है मेरा लहज़ा यकीनन! मगर बरता है किस शाइस्तगी से!!’ हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
परेशां है समंदर तिश्नगी से
मिलेगा क्या मगर इसको नदी से
अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे
कमाया है जो हमने मुफलिसी से
आदरणीय वीनस जी शानदार शेर हेतु सादर बधाई
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