For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ ... श्रध्दांजलि !

माँ ... श्रध्दांजलि !

(पावन माँ दिवस पर)

मैं प्राण-स्वपन तुम्हारा, तुमने सर्जन किया था मेरा,

कभी मैंने जन्म लिया था तुम्हारे पावन-अंदर,

और अब विदा के २६ साल उपरान्त भी आज

तुम जी रही हो प्रतिदिन, प्रतिपल मेरे अंदर।

माँ, देखो मुझको, पहचानो, इन भयानक वीरानों में भी,

सामने तुम्हारे खड़ा, आराधना में झुका हूँ नत-मस्तक,

स्वीकार करो, माँ, मेरा यह श्रध्दावनत चरण-वन्दन।

अनगिन स्वर्णिम रातों की स्मृतियाँ तुमसे बंधी हैं माँ,

जब काम से दिन भर की थकन का बोझ लिए

रात के किसी भी पहर मैं आता था देर से घर,

और तुम घंटों बैठी जोह रही होती थी पथ मेरा,

किवाड़ खोलते ही आती सर्व-प्रथम वह आवाज़ तुम्हारी..

"ठीक हें?.. रख साँई दी... जींदा रहवें मेरा लाल" (पंजाबी)

(ठीक हो?.. भगवान तुम्हारे साथ हों.. जीते रहो मेरे लाल)

शहद-सी मीठी आवाज़ अब चिपक गई है इन दीवारों से,

और दर्द-भरे अंधेरों में मेरे सिर में  तड़फ़ड़ाते हैं कितने

मुठभेड़ करते, ज्वालामुखी सवाल, कितने प्रायश्चित, कि

ज़िन्दगी के स्वार्थों से घिरा, मैं अच्छा बेटा नहीं था।

तुमने तो एक बार भी कभी, कोई शिकायत नहीं की,

कह देती, कुछ भी शिकायत कर देती तो अच्छा था,

द्वंद्व के कुहरीले फैलावों में, स्वयं को कोसता न रहता।

आया वह उन्मूलक दिन जब तुम कुर्सी की बाँह पर गिरी,

एक हाथ में रोटी का कौर था, दूसरे में कटोरी थी काँपी।

तुम कहती रही,"न ले जाओ मुझको अस्पताल, न ले जाओ,

मुझको घर में ही मरने दो बेटा, मुझको नहीं है वहाँ पर मरना",

माँ, मुझको क्षमा करो, मैंने नही माना तुम्हारा अंतिम कहना।

क्या तुम्हारे प्राणों में माँ, अभी भी है मेरे आने की वही आस?

मैं आऊँगा, सच आऊँगा माँ, तुम्हारे प्राणों से बँधा तुम्हारे पास।

                                      --------

                                                            

                                                               -- विजय निकोर

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 890

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 4, 2014 at 7:50am

//बहुत सुन्दर श्रद्धा सुमन//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया वंदना जी।

Comment by vijay nikore on February 3, 2014 at 8:17am

आपकी भावपूर्ण श्रद्धा और सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीया वन्दना तिवारी जी।

Comment by vandana on February 2, 2014 at 7:50am

बहुत सुन्दर श्रद्धा सुमन आदरणीय विजय सर ....भावुक करती उत्कृष्ट रचना 

Comment by Vindu Babu on February 2, 2014 at 4:33am

आदरणीय विजय सर:

माँ...के लिए कुछ कहना सार्थक है तो बस 'माँ'।

कितनी मार्मिक अभिव्यक्ति की है आपने आदरणीय!

माँ होती है तब तो क्षण-क्षण रोशनी दिखाती ही है और जब नहीं होती तब भी उसकी ममता...उसका स्नेह...सदा उर्जान्वित करता रहता है। उसी ऊर्जा, उसी रौशनी को जीती हुई अन्तःकरण को द्रवित कर रहा रहा आपकी रचना का हर एक शब्द।

शत-शत नमन उन विभूति को जिन्होंने आप जैसे पुत्र का जन्म दिया।

भावपूर्ण श्रृद्धांजलि असीम आदर के साथ अर्पित करती हूँ।

-वन्दना

Comment by vijay nikore on February 1, 2014 at 12:56pm

//लाजवाब और बेहद भावपूर्ण। पढ़ते पढ़ते सवर्गीय माँ और भी शिद्दत से याद आई.//

"माँ" के लिए या "माँ" की याद में हम कितना भी कहें, कम है। आपने मेरी रचना को इस प्रकार अनुभव किया, आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय भाई योगराज जी। आभारी हूँ।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 15, 2014 at 1:27pm

लाजवाब और बेहद भावपूर्ण। पढ़ते पढ़ते सवर्गीय माँ और भी शिद्दत से याद आई.

Comment by vijay nikore on June 2, 2013 at 7:13am

आदरणीय सौरभ जी:

 

आपकी भावाभिव्यक्ति मेरी प्रेरणा का स्रोत है।

उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद, सौरभ जी।

 

सादर,

वि्जय निकोर

 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2013 at 9:31am

एक कृतज्ञ पुत्र की सादर भावनाओं को प्रस्तुत करती भावमय रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय विजय भाईजी.

सादर

Comment by vijay nikore on June 1, 2013 at 7:01am

 

//अत्यंत मर्मस्पर्शी कविता माँ के लिए...//

रचना की सराहना के लिए हा्र्दिक आभार, आदरणीया  ऊषा जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on June 1, 2013 at 6:58am

 

// एक माँ के प्रति हृदय से निकली श्रद्धांजली...

भावों और शब्दों का संचय ,और भाषा शैली  बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया है //

आपके भावमय आशीर्वाद और उत्साहवर्धन के लिए

आभारी हूँ, आदरणीया कुंती जी। 

सादर,

विजय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service