माँ सचमुच माँ ही होती है,
उसके जैसी कोई और नहीं होती है।
वो हँसती है हमारे साथ ,
और हमारे साथ ही रोती है।
वो देती है तसल्ली दुःख में,
वो मुस्कराती है हमारे सुख में।
वो निराशा में नया सवेरा लाती है,
कष्ट में धीरज बंधाती है।
जब होता है कोई दुःख तो,
अक्सर माँ की याद आती है।
लगता है जैसे भाग कर,
उसके पास मैं चली जाऊँ।
और उसे अपने सारे दुखड़े,
अपने सारे दर्द कह सुनाऊँ।
जब आये कोई मुसीबत तो,मैं
उसकी गोद में सिमटकर छिप जाऊँ।
वो बचा ले मुझे मेरी परेशानियों से,
मेरे दुखों से,जीवन की समस्याओं से।
वो बुला ले मुझे अपने पास,
छुपा ले मुझे अपने आँचल में।
बचा ले मुझे लोगों के तानों से,
संभाले मुझे नए-नए बहानों से।
आज माँ क्यों ज़्यादा याद आती है,
क्यों वो भुलाये भुलाई नहीं जाती है?
इस संसार में बड़ी होकर बेटी,
क्यों माँ के लिए परायी हो जाती है?
क्यों नहीं रहता उसका अपनी ही
माँ पर अपना कोई अधिकार ?
क्यों छीन जाता है उससे, माँ का
आँचल और उसका स्नेह-दुलार।
क्यों अपनी ही माँ से मिलने के लिए
उसे दिन-रात तड़पना पड़ता है।
अक्सर माँ की याद आने पर उसे,
क्यों उस याद में बिलखना पड़ता है?
क्यों उसकी माँ,उसकी माँ नहीं रहती,
क्यों वो उसके लिए परायी हो जाती है?
क्यों दूसरी माँ को उसे अपनाना पड़ता है,
जब उसकी अपनी विदाई हो जाती है।
क्यों उसके नए घर की नयी माँ,
उसकी सगी माँ नहीं बन पाती ?
क्यों वह उसे अपनी बहू मानती है,
क्यों वह उसे बेटी नहीं समझ पाती?
क्यों वह उस परायी लड़की के संग,
अपनी सगी बेटी-सा प्यार नहीं रखती।
अपनी बेटी तो अपनी बेटी है,पर
बहू में उसे कभी बेटी नहीं दिखती।
क्या एक माँ और एक बेटी की,
इस समस्त संसार में यही व्यथा है,
कि हैं तो दोनों एक -दूसरे से जुडी हुई,
पर दोनों के जीवन की अलग कथा है।
कितना अच्छा होता,इस संसार में ,
यदि बेटियां भी माँ के साथ ही रहतीं।
माँ के साथ खातीं -खेलतीं,हंसतीं-बोलतीं,
और माँ से अलग होने की पीड़ा न सहतीं।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]
Comment
कितना अच्छा होता,इस संसार में ,
यदि बेटियां भी माँ के साथ ही रहतीं।
माँ के साथ खातीं -खेलतीं,हंसतीं-बोलतीं,
और माँ से अलग होने की पीड़ा न सहतीं | ..........बिलकुल हर माँ दिल से तो यही चाहती है.
बहुत सुन्दर रचना आदरणीया सावित्री राठौर जी.
मां मां ही होती है
शत शत नमन
सादर बधाई
,भावनात्मक अभिव्यक्ति .
आ0 सावित्री जी, बहुत सुन्दर। बधाई स्वीकारें। सादर,
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