अब जो तुम ना लोटोगे तो
आओ फिर बटवारा कर लो
तुम अपने दिल से जो चाहो
वो सभी सोगातें रख लो....
हाँ मैं दोषी नहीं फिर भी चलो
मेरी गवाही तुम ले लो
गिनाते थे जो ऐब मुझ को
वो तुम अब लिख के दे दो.....
भर के रखे तुम्हारे लिए
अरमानो के पैमाने जो
जाते हुए उनका अंतिम
संस्कार खुद से कर दो
अब भी कोई बता दो
शर्त रखते हो तो
इस वक़्त उसे भी
आखिरी सलामी दे दो....
सूखे फूलो को मैं रख लूंगी
तुम उनके जज्बात ले लो
मेरी आँखों के अक्स का
तुम क्या करोगे छोड़ो
तुम धूप का चश्मा रख लो
याद आएँगी मुझे वो बरसातें
मुझे गीली सही तुम
वो सूखी चादर रख लो....
मैं अंधेरों में ही तुम्हे
याद कर लुंगी
तुम तारों की झिलमिल
बारातें रख लो
मेरा कल तो तुम
ले ही चुके हो अपने
कल के लिये
मेरी दुआएं रख लो....
मेरे लिये तुम्हारे धोखे सही
अपने लिये मेरी वफाएं रख लो
सलामत रहे मोहब्बत मेरी
कम जो पड़े तो मेरी
उम्र भी तुम रख लो....
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया विशाल जी .....
जी जरुर राजेश जी आपकी सलाह पर ध्यान दूंगी .........विचार प्रकट करने हेतु धन्यवाद आपका .....
अत्यन्त भावपूर्ण रचना है......लिखती रहिये......आपके उज्ज्वल भविष्य के लिये शुभकामना !!!!
मेरे हिसाब से यह रचना काफी कुछ कहती हुई सी है परंतु प्रवाह इतना उथला है कि चाह कर भी साथ चल ना पाया । इसपर ध्यान देने की जरूरत है
धन्यवाद लक्ष्मन सर जी .......
रचना के भाव प्रस्तुत करनेहेतु बधाई -
बटवारे से होते न्यारे वारे,
रखलो तुम जो भी चाहो
लो दिल में जो भी समावे,
उम्र चाहे वह भी ले लो |
दिल दरिया है हामारा
परखना चाहे परखो,
स्वाद चखना है चखलो
नही रुचे फिर लौटा दो |
मेरे इन भावो को परखो
इन की इज्जत रखलो - लक्ष्मण
अरे नहीं रामजी ऐसा नहीं है…. आपका जवाब तो दे ही दिया था मैंने ....मैं ये बदलना ही चाहती थी ...
ha ha ha ha hamne to aise hi kah diya tha anyatha na lijiyega//saadar
कवी दीपेन्द्र सर जी शुक्रिया आपके कमेंट की प्रतीक्षा थी ....धन्यवाद सर
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