जब नयन गुनगुना हो गया
तो सृजन गुनगुना हो गया
रूप की धूप में बैठकर
ये बदन गुनगुना हो गया
तेरी यादों की भट्ठी जली
मेरा मन गुनगुना हो गया
उसने डुबकी लगाई कहीं
आचमन गुनगुना हो गया
नर्म होंठों पे जुंबिश हुई
हरिभजन गुनगुना हो गया
थामकर हाथ हम चल पड़े
पर्यटन गुनगुना हो गया
उनके आने की आहट हुई
अंजुमन गुनगुना हो गया
साँस ने साँस को आग दी
और मिलन गुनगुना हो गया
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
साँस ने साँस को आग दी
और मिलन गुनगुना हो गया.......वाह!
आदरणीय धर्मेन्द्र जी सादर, बहुत सुन्दर गजल आपसी समझ से सफ़र आसान होने का संदेश देती है. सादर बधाई स्वीकारें.
सुंदर अशआर समेटे हुए गुनगुनी गजल पे ढेरों दाद कुबुलिये आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी
वाह आदरणीया वाह छोटी बहर में लाजवाब ग़ज़ल कह दी आपने, सभी के सभी अशआर बेहद सुन्दर हैं. दिली दाद कुबूल फरमाएं.
बांच के छोटी बहर की ग़ज़ल,
आज अरुन गुनगुना हो गया,
छोटी बहर में अच्छी और रूचिकर! बधाई आपको!
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