क्षणिका : नीम चढ़ा करेला
नीम चढ़ा करेला
सेहत के लिए सबसे अच्छा होता है
लेकिन चर्बी को सेहत मानने वाले समाज में
ये कहीं नहीं बिकता
क्षणिका : हवा की तरह
मुझसे प्रेम करो हवा की तरह
ताकि तुम्हारा हर एक अणु
मेरे जिस्म के हर बिन्दु से टकराये
और तुमसे दूर होते ही
मेरी नसों में बह रहा लहू
मुझे फाड़कर रख दे
क्षणिका : विकास
चिकित्सा कम कर देती है इंसान के मरने की संभावना
अभियांत्रिकी कम कर देती है दुर्घटनाओं की संभावना
साहित्य कम कर देता है इंसानियत के मरने की संभावना
ये घटती हुई संभावना ही विकास है
बाकी सब बकवास है
क्षणिका : भाषा चक्र
भावों का सूर्य उगा
शब्दों के मेघ बने
ज्ञान के पहाड़ों पर
झूम झूम बरसे
फूट चलीं भाषा की नदियाँ
एक दूसरे से संगम करतीं
प्रेम के महासागर में जा गिरीं
Comment
आदरणीय महोदय जी
सादर
छनिकाएं हैं उत्तम
बधाई सर्वोत्तम
पहले नीम चढ़ा करेला और हवा की तरह !
चर्बी को सेहत मानने वाला समाज हर तरह की चर्बियों के इज़ाफ़े के लिए तत्पर है. नीम पर चढ़ा करेला उपलब्ध हुआ तो क्या. उसकी हिनाई तो यों होगी कि नीम पर चढ़े करेले क्या हर तरह के करेले हाशिये पर रख दिये जाते हैं. उनका वज़ूद ही सवालों के दायरे में होता है. और बाद की पाढ़ी करेले को करेला के वज़ूद पर ही सवाल हो जाते हैं !
हवा की तरह में जिस आसानी से आपने सर्वव्याप्तता को शब्द दिया है व अभिभूत करता है, आदरणीय धर्मेन्द्रजी.
विकास के इंगित थोड़े अक्लिष्ट हैं अतः बोधगम्य हैं. एक बात अवश्य है कि इस क्षणिका में कई तरह की संभावनाओं की बात हुई है तो ये घटती हुई संभावना ही विकास है जैसी निर्णय पंक्ति बहुवचन की होती. यह मेरा एक सझाव भर है.
बहुत सरल तरीके से आपनेभौतिक विकास को परिभाषित कर दिया है, आदरणीय.
भावों का चक्र .. एकदम भौगोलिक या प्राणिशास्त्रीय किसी चक्र का प्रारूप बनाता दीखता है. सटीक कल्पना की है आपने.
बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ इन क्षणिकाओं के लिए !
आदरणीय धर्मेन्द्र जी सादर, सभी क्षणिकाएँ सुन्दर बन पड़ी है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
वाह बहुत खूब धर्मेन्द्र जी .........विकास के लिए विशेष बधाई
चिकित्सा कम कर देती है इंसान के मरने की संभावना
अभियांत्रिकी कम कर देती है दुर्घटनाओं की संभावना
साहित्य कम कर देता है इंसानियत के मरने की संभावना
ये घटती हुई संभावना ही विकास है
बाकी सब बकवास है
विकास
चिकित्सा कम कर देती है इंसान के मरने की संभावना
अभियांत्रिकी कम कर देती है दुर्घटनाओं की संभावना
साहित्य कम कर देता है इंसानियत के मरने की संभावना
ये घटती हुई संभावना ही विकास है
बाकी सब बकवास है............अंतिम दो लाइन विचारणिय है आदरणीय .
: भाषा चक्र
भावों का सूर्य उगा
शब्दों के मेघ बने
ज्ञान के पहाड़ों पर
झूम झूम बरसे
फूट चलीं भाषा की नदियाँ
एक दूसरे से संगम करतीं
प्रेम के महासागर में जा गिरीं
बहुत सुंदर ......./ सादर / कुंती .
विकास ---चिकित्सा कम कर देती है इंसान के मरने की संभावना
अभियांत्रिकी कम कर देती है दुर्घटनाओं की संभावना
साहित्य कम कर देता है इंसानियत के मरने की संभावना
ये घटती हुई संभावना ही विकास है, बाकी सब बकवास है | - घटती संभावनाओ पर सुन्दर क्षणिका के लिए बधाई
भाषा चक्र ---भावों का सूर्य उगा
शब्दों के मेघ बने, ज्ञान के पहाड़ों पर
झूम झूम बरसे, फूट चलीं भाषा की नदियाँ
एक दूसरे से संगम करतीं,
प्रेम के महासागर में जा गिरीं-- ये है बढती संभावनाए है, हार्दिक बधाई भाई धर्मेन्द्र सिंह जी
आ0 धमेन्द्र जी, ’झूम झूम बरसे
फूट चलीं भाषा की नदियाँ
एक दूसरे से संगम करतीं
प्रेम के महासागर में जा गिरीं’ अतिसुन्दर। बधाई स्वीकारें। सादर,
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