For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बिंदु में लंबाई, चौड़ाई और मोटाई नहीं होती

बना दो इससे गदा को गंदा, चपत को चंपत, जग को जंग, दगा को दंगा

मद को मंद, मदिर को मंदिर, रज को रंज, वश को वंश, बजर को बंजर

कोई सवाल करे तो कह देना

ये बिंदु नहीं हैं

ये तो डॉट हैं जो हाथ हिलने से गलत जगह लग गए

 

केवल लंबाई होती है रेखा में

चौड़ाई और मोटाई नहीं होती

खींच दो गरीबी रेखा जहाँ तुम्हारी मर्जी हो

कोई उँगली उठाये तो कह देना ये गरीबी रेखा नहीं है

ये तो डैश है जो थोड़ा लंबा हो गया है

 

शब्दों और परिभाषाओं से अच्छी तरह खेलना आता है तुम्हें

तभी तो पहुँच पाये हो तुम देश के सर्वोच्च पदों पर

 

मगर कब तक छुपाओगे अपने कुकर्म परिभाषाओं के पीछे

एक न एक दिन तो जनता समझ ही जाएगी

कि कुछ भी बदलने के लिए सबसे पहले जरूरी है परिभाषाएँ बदलना

 

तब जब ये आयातित डाट और डैश जैसे चिह्न हम निकाल फेंकेंगे अपनी भाषा से

तब जब बिंदु होगा लेखनी से न्यूनतम संभव लंबाई, चौड़ाई और मोटाई वाला

रेखा होगी न्यूनतम संभव चौड़ाई और मोटाई वाली

तब कहाँ छुपोगे ओ परिभाषाओं के पीछे छुपकर बैठने वालों

---------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 835

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 7, 2013 at 11:05am

धर्मेन्द्र जी गणित और विज्ञान के तकनीकी शब्दों को आपकी रचनाओं में अक्सर प्रयोग होते देखती हूँ जो नव प्रयोग से रचना में रोचकता भर देते हैं तथा लीक से हट कर लगती हैं ये द्वी अर्थी शब्द और चिन्ह जनता को या (ओफ्फिस में बॉस को हाहाहा )अधिक दिनों तक बेवकूफ नहीं बना पाते उसी तरह ये सत्ता के ठेकेदार अधिक दिनों तक जनता को नहीं छल सकते एक सार्थक मर्म के इर्द गिर्द शब्दों का ताना - बाना बहुत अच्छा लगा बधाई आपको 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 5, 2013 at 3:07pm

मगर कब तक छुपाओगे अपने कुकर्म परिभाषाओं के पीछे

एक न एक दिन तो जनता समझ ही जाएगी

कि कुछ भी बदलने के लिए सबसे पहले जरूरी है परिभाषाएँ बदलना.............वाह! बहुत खूब!

आदरणीय धर्मेन्द्र जी सादर, बहुत ही सुन्दर बात कही है. वाह! बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on May 5, 2013 at 1:59pm

आदरणीय मेरी बधाई स्वीकारें। जिन बिम्बों का आपने प्रयोग किया है वे अनोखे हैं और उनकी परिभाषायें भी अनोखी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2013 at 10:43pm

आपका सादर आभारभाईजी, कि आपने मेरी बातों का अपनी विशाल हृदयता से अनुमोदित कर रचना-वाचन के क्रम में बन रहे मेरे आत्मविश्वास को सार्थक संबल दिया है. हम तो आपकी रचनाओं के साथ-साथ आपकी अत्यंत प्रखर और उच्च रचनाधर्मिता के मुखर प्रशंसक हैं.

सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 4, 2013 at 8:54pm

आदरणीय Saurabh जी, आप से पूर्णयता सहमत हूँ कारण यह कि यह रचना एक ही दिन में लिखी और अगले ही दिन पोस्ट कर दी। यानी कि पोस्ट करने की जल्दी में रचना को पकने का समय नहीं दिया। आपकी बेबाक राय के लिए आभारी हूँ। स्नेह बना रहे।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 4, 2013 at 8:52pm

आदरणीय by यशोदा जी राज बुन्दॆली जी,  PRADEEP जी, seemal जी, Laxman Prasad जी रचना को समय एवं समर्थन देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 4, 2013 at 7:21pm

वाह !बिंदु को डाट और रेखा को डैश से परिभाषे बदलने के नवीन प्रयोग बताने हेतु बधाई श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी बधाई 

सही कहा है विद्वजन ने 

डाट डैश तो आयातित है 

अपनाते इनको जो 

शोर्ट कट मारा करते 

हम तो लखते पूर्ण विराम 

डाट नहीं हमारी संस्कृति |

स्वदेशी छोड़ कर लोग 

आयातित अपनाते जो 

उनमे देखते है हम -

कही कुछ विकृति |

Comment by seema agrawal on May 4, 2013 at 2:09pm

कोई सवाल करे तो कह देना

ये बिंदु नहीं हैं

ये तो डॉट हैं जो हाथ हिलने से गलत जगह लग गए

कोई उँगली उठाये तो कह देना ये गरीबी रेखा नहीं है

ये तो डैश है जो थोड़ा लंबा हो गया है......बहुत खूब धर्मेन्द्र जी नवीन प्रयोग 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 4, 2013 at 2:02pm

सादर , आपको ,आपकी रचना को नमन .

पर ये कब होगा, कैसे होगा. क्या ये होगा भी 

आदरणीय जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2013 at 11:52am

मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति के क्रम में गणीत या विज्ञान की शब्दावलियों का आप अक्सर प्रयोग करते रहते हैं. ऐसा अभिनव प्रयोग कम ही रचनाकार कर पाते हैं. आपका संप्रेषण विन्दुवत तो होता है. लेकिन उसके गिर्द जो वृत होता है उसकी परिधि का विस्तार अत्यंत विस्तृत होता है.

इस रचना में विन्दु और रेखाओं के प्रतीक के माध्यम से आम जन की सामयिक हताशा को बढिया स्वर मिला है. हताशे की सामयिकता कितना सर्वग्राही हो सकती है इसका सम्यक प्रस्तुतिकरण हुआ है.

किन्तु, प्रस्तुत कविता में शाब्दिकता रचना की गहनता को कम करती दिख रही है. यों, ऐसा आपकी रचनाओं में कम ही होता है कि बिम्बों के आस-पास के शब्द अपने भावजन्य पर्याय को साथ जीयें. लेकिन, आदरणीय,  इस बार हुआ है.

बहरहाल, रचना प्रस्तुति हेतु सादर धन्यवाद और हार्दिक शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service