क्या है - जिंदगी ,
संध्या है या प्रभात,
शीत है या उष्ण,
सूरज की लाली या चांदनी है चाँद की ,
आदि है या अंत
स्वप्न है या चैतन्य ,
सुख है या दुःख ,
गूंज है ये सत्य की या नाद ये असत्य की |
गीत है ये प्रेम का या है बिगुल संग्राम का,
शब्द हैं वाचाल के या संकेत है ये मूक का,
अनंतता है सिन्धु की या है संकीर्णता है ये ताल की ,
अद्यतः अनभिज्ञ है , "जीवन-सिद्धांत" से
Comment
जींदगी की परिभाषा को सुन्दर बिम्बों के आधार ले खोजती सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय अनुज कुमार पांडे जी.
सभी सम्मानित जनों को बधाई के लिए बहुत -२ धन्यवाद |
आ0 अनुज भाई जी, बहुत सुन्दर रचना।.. बधाई स्वीकारें। सादर,
बहुत सुन्दर रचना, बधाई
ये मंथन करने का दार्शनिक प्रश्न है | जिंदगी क्या है, यह सबी के लिए अलग अलग है, किसी के लिए भौतिक सुखा भोगने
तो किसी के लिए स्वाध्याय करने, किसी के लिए यह प्रभु की सुन्दर देन है | किसी के लिए यह सुख दुख का अहसास है \
और यही सब आपने रचना में उल्लेख करने का प्रयास भी किया है | बधाई
ऊपर वाला एक बहुत सफल दार्शनिक कथाकार है ,जिसके झोले में अनंत कथाएँ लिखी भरीं पड़ीं हैं ,इसलिए हर दो की जीवन कथा को सर्वथा जुदा कर देता है .,चटपटा ,झालदार ,मसालेदार ,कभी बंगाल ,असाम या झारखण्ड ट्रेन से आयें तो झालमुढ़ी खाएँ ,जिंदगी कुछ ऐसी ही है -खट्टी ,मीठी ,तीती और न जाने कितने स्वादों से भरी और एक टुकड़ा पतला सा नारियल का मिठास लिए . अजीब सी है -बिन्दू से सिंधु तथा शून्य से ब्रह्माण्ड तक का विन्यास इसमें निहित है .
पंकजजी , आपके प्रश्नों में सारे उत्तर हैं . सुंदर कविता .
आदरणीय बहुत सुन्दर प्रयास आपका। आपको ढेरों बधाई।
एक निवेदन करना चाहूंगा कि 'है'' का प्रयोग कई जगह आवश्यक नहीं है, उसके बिना काम चल सकता था लेकिन उसे प्रयोग किया गया है।
सादर!
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