For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आकंठ डूबे हुये हो क्यों,

अज्ञान तिमिर गहराता है।

ये तेरा ये मेरा क्यों ,

दिन ढलता जाता है।

 

क्यों सोई अलसाई  अंखियाँ,

न प्रकाश पुंज दिखाता है ।

जीवन मरण का फंदा ,

आ गलमाल बन लहराता है।

 

तब क्यों रोते हो,

जब सब छिनता जाता है।

खोलो ज्ञान चक्षु औ,

हटा दो तिमिर घनेरा।

फैले  पुंज प्रकाश का ,

होवे  दर्शन नयनाभिराम।

 

 

(अप्रकाशित एवं मौलिक)

Views: 393

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 12:57am

धन्यवाद आप सभी को ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 3, 2013 at 12:20am

सुन्दर रचना.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2013 at 11:36pm

आपका भाव संप्रेषण श्लाघनीय है, आदरणीया

सादर

Comment by annapurna bajpai on May 29, 2013 at 12:14am

आप सबका हार्दिक आभार ।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2013 at 10:36pm

आ0 अन्नपूर्णा जी, सुन्दर भाव पूर्ण रचना। ’क्यों सोई अलसाई अंखियाँ,
न प्रकाश पुंज दिखाता है ।’ हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by Meena Pathak on May 27, 2013 at 4:20pm

खोलो ज्ञान चक्षु औ,

हटा दो तिमिर घनेरा।

फैले  पुंज प्रकाश का ,

होवे  दर्शन नयनाभिराम।

 
बहुत सुन्दर रचना अन्नपूर्णा जी ....... बधाई स्वीकारें 

Comment by Shyam Narain Verma on May 27, 2013 at 11:05am
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by annapurna bajpai on May 26, 2013 at 6:12pm

शुक्रिया अभिनव जी ।

Comment by Abhinav Arun on May 26, 2013 at 1:16pm

सन्देश परक रचना आदरणीया अन्नपूर्णा जी , बहुत शुभकामनाएं !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service