आकंठ डूबे हुये हो क्यों,
अज्ञान तिमिर गहराता है।
ये तेरा ये मेरा क्यों ,
दिन ढलता जाता है।
क्यों सोई अलसाई अंखियाँ,
न प्रकाश पुंज दिखाता है ।
जीवन मरण का फंदा ,
आ गलमाल बन लहराता है।
तब क्यों रोते हो,
जब सब छिनता जाता है।
खोलो ज्ञान चक्षु औ,
हटा दो तिमिर घनेरा।
फैले पुंज प्रकाश का ,
होवे दर्शन नयनाभिराम।
(अप्रकाशित एवं मौलिक)
Comment
धन्यवाद आप सभी को ।
सुन्दर रचना.
आपका भाव संप्रेषण श्लाघनीय है, आदरणीया
सादर
आप सबका हार्दिक आभार ।
आ0 अन्नपूर्णा जी, सुन्दर भाव पूर्ण रचना। ’क्यों सोई अलसाई अंखियाँ,
न प्रकाश पुंज दिखाता है ।’ हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
खोलो ज्ञान चक्षु औ,
हटा दो तिमिर घनेरा।
फैले पुंज प्रकाश का ,
होवे दर्शन नयनाभिराम।
बहुत सुन्दर रचना अन्नपूर्णा जी ....... बधाई स्वीकारें
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
शुक्रिया अभिनव जी ।
सन्देश परक रचना आदरणीया अन्नपूर्णा जी , बहुत शुभकामनाएं !!
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