!!! गजल !!!
वज्न- 2122, 2122, 2122, 212
अब वतन को लूटकर सिर कांटना क्या पीर है।
आम जनता रोज मरती शापता क्या पीर है।।
घूस खोरी या कमीशन खूब करते ठाठ से।
मुफलिसी का हाथ थामे रास्ता क्या पीर है।।1
जिन्दगी की डोर टूटी बम धमाका जोर से।
आदमी अब आदमी ना वासना क्या पीर है।।2
न्याय भी अब राग गाती या गरीबी-ताज हो।
जन्म का अधिकार कहती आत्मा क्या पीर है।।3
जेठ सूरज की नवाजिश वृक्ष जलकर मर रहे।
आश का पंछी पियासा चाहना क्या पीर है।।4
रात रोते चांद-तारें नींद पहरों पर अड़े।
दूब-शबनम रोज भटकें वास्ता क्या पीर है।।5
आप ‘सत्यम‘ बात लिखना आइना जो देख ले।
अब न नेता देश का है दोगला क्या पीर है।।6
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 अभिनव अरून भाई जी, आपका स्नेह और सराहना पाकर मन गदगद हो गया। आप लोगों के सानिध्य में मैं गजल सीख पा रहा हूं। यह मेरे लिए परमआनन्द और सौभाग्य की बात है। आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
अति सुंदर रचना केवल जी बहुत बधाई
केवल प्रसाद जी , कई दिनों के बाद आपकी सुंदर रचना पढ़ने को मिला .
जेठ सूरज की नवाजिश वृक्ष जलकर मर रहे।
आश का पंछी पियासा चाहना क्या पीर है।।4
रात रोते चांद-तारें नींद पहरों पर अड़े।
दूब-शबनम रोज भटकें वास्ता क्या पीर है।।5.............हमेशा की तरह ...झूठ को नकारते सच्चाई का नकाब उठाती ...........अति सुंदर
सादर / कुंती
बढ़िया ग़ज़ल हुई भाई सत्यम जी
बधाइयाँ !!
जेठ सूरज की नवाजिश वृक्ष जलकर मर रहे।
आश का पंछी पियासा चाहना क्या पीर है
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