!!! कुण्डलियां !!!
तपता सूरज देख कर, मौसम है बेहाल।
तरू, उपवन, जन ताप से, नित.नित हुए हलाल।।
नित.नित हुए हलाल, निरूत्तर ठगे खडे़ हैं।
निर्वस्त्रहि भी ढाल, धर्म में डटे अड़े है।।
अब कालहु का काल, इन्द्र भगवन को जपता।
धरा करे चित्कार, जेठ सूरज सा तपता।।
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 राजेश भाई जी, आपका कथन उचित ही है, उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
आ0 रक्ताले सर जी, आपका कथन उपयुक्त ही है, सर जी!
तरू उपवन जन ताप से, नित.नित हुए हलाल।।....तरु टंकण त्रुटी है.यदि यहाँ वन लिखते तो उचित होता’जन.ताप’ वरना इसका अर्थ आप के कहे से भिन्न हो रहा है।....आप बिलकुल सही हैं।
नित.नित हुए हलाल...’नित-नित’ ‘नित-नित‘ करें...ऐसा ही है।
निर्वस्त्रहि भी ढाल....’निर्वस्त्रहि भी ढाल’ का क्या अर्थ समझें?.....बिना पत्तों के बृक्ष और गर्मी से बेहाल अर्धनग्न व्यक्ति से आशय है।
अब कालहु का काल.. ’काल को का काल’ उचित नहीं है...’कालों का काल‘ से आशय है
‘जेठ सूरज सा तपता‘ आपके द्वारा जिस तरह प्रयोग किया गया है उचित नहीं लगता..जी! जेठ सूरज ज्यों तपता। आपके उत्तम सुझावों के लिए आपका हार्दिक आभार। सादर,
तपता सूरज देख कर, मौसम है बेहाल।
तरू, उपवन, जन ताप से, नित.नित हुए हलाल।।…….”तरु” टंकण त्रुटी है.यदि यहाँ वन लिखते तो उचित होता,”जन-ताप” वरना इसका अर्थ आप के कहे से भिन्न हो रहा है.
नित.नित हुए हलाल, निरूत्तर ठगे खडे़ हैं।....... “नित.नित” “नित-नित” करें.
निर्वस्त्रहि भी ढाल, धर्म में डटे अड़े है।।.........”निर्वस्त्रहि भी ढाल” का क्या अर्थ समझें?
अब कालहु का काल, इन्द्र भगवन को जपता। “कालहु का काल” “काल को का काल” उचित नहीं है.
धरा करे चित्कार, जेठ सूरज सा तपता।। “जेठ सूरज सा तपता” आपके द्वारा जिस तरह प्रयोग किया गया है उचित नहीं लगता.
आदरणीय केवल प्रसाद जी क्षमा करें किन्तु मुझे लगता है छंद में काफी सुधार की जरुरत है.सादर,
उत्तम रचना के लिए हार्दिक बधाई, मात्रा वाली रचना में मुश्किल आती ही है, ना चाहते हुए भी कुछ ना कुछ छूट जाता है । लेकिन यात्रा जारी रहे, बहुत बधाई
आ0 कुन्ती जी, उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
आ0 रामशिरोमणि भाई जी, उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
आ0 विजयाश्री जी, उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आ0 अरून शर्मा भाई जी, जी! संशय में ध्यान भटक गया.....3+3+2+3+2 विषम पदों की रचना होती है। समुचित मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आ0 श्याम नारायण जी, उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
बहुत सुंदर रचना केवल प्रसाद जी ...सादर / कुंती
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