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आये थे लेकर के हम भी आँख मे नक्शे किसी के ॥

क्या कहा सुनसान हवा कह रही किस्से किसी के 

ये भी लगता पड़ गयी मेरे जैसे हिस्से किसी के 

एक तरफ तो आग है और एक तरफ ये खाई है 

आये थे लेकर के हम भी आँख मे नक्शे किसी के ॥ 

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Comment by Ashok Kumar Raktale on June 8, 2013 at 9:48pm

आदरणीय योगेन्द्र जी सुन्दर भावपूर्ण रचना हुई है किन्तु मात्र दो शेर तो उचित नहीं है कमसे कम पांच तो अवश्य ही होना चाहिए.सादर.

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2013 at 9:24pm

आये थे लेकर के हम भी आँख मे नक्शे किसी के ॥ 

क्या कहने भाई 
बहुत खूब 

Comment by बृजेश नीरज on June 3, 2013 at 10:15pm

आदरणीय योगेन्द्र भाई आपकी तरह मैं भी छोटा ही हूं अभी यहां। आप सबके साथ ही मैं भी सीख रहा हूं। हम सब साथ ही बड़े होंगे।
मुझे कुछ दिक्कत लगी उसे आपको इंगित किया। आपने मेरे कहे को मान दिया इसके लिए आपका आभार!

Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:10pm

बृजेश जी छोटे बच्चे जब चलना शुरू करतें हैं तो लड़खड़ाते ही हैं । इसीलिए ऐसा हुआ है आगे से मैं कोशिश करूंगा की आपकी उम्मीदों पे खरा उतरूँ ॥ इस परिवार का सबसे छोटा और नादान, लड़खड़ाते हुए कदमों वाला और तुतलाती हुई ज़बान वाला समझ कर माफ करने की कृपा करें ।  आपके विचार मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यूंकी इनहि से मुझे प्रेरणा और बहुत कुछ सीखने को मिलता है ॥ 

बहुत बहुत धन्यवाद बृजेश जी॥ 

Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:06pm

लक्ष्मण जी बहुत बहुत शुक्रिया  

Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:06pm

अन्नपूर्णा जी धारों धन्यवाद आपको...

Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:06pm

bahut bahut shukriya kunti ji...

Comment by coontee mukerji on June 3, 2013 at 1:45am

बस इतना ही......कम से कम नक्शा तो दिखा ही जाते .......योगेंद्र जी.

Comment by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 1:28am

बढ़िया मुक्तक बहुत बधाई ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 2, 2013 at 10:29am

अच्छा मुक्तक बधाई 

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