दिल में उठता पीर देखो
द्रोपदी का चीर देखो
मोल जिसका खो गया है
आँख का वो नीर देखो
दिल में जो सीधे लगे बस
शब्द के वो तीर देखो
फिर हुआ बलवा कहीं पे
खो गया जो वीर देखो
थी कभी नदियाँ यहाँ पर
बह गया जो छीर देखो
सांवरे को भूल कर के
आज राँझा हीर देखो
अनुराग सिंह "ऋषी"
मौलिक व अप्रकाशित रचना
Comment
आभार है सर आपका साथ में नमन भी :-)
आदरणीय अनुराग जी सुन्दर मनमोहक रचना सादर बधाई स्वीकारें.
वीनस जी ह्रदय से आभार आपका :-)
अनुराग जी
रचनाधर्मिता के लिए बधाई
आपकी अन्य रचनाओं का इंतज़ार रहेगा
आभार आपका मैम :-)
badhiya bhavpurn kavita ke liye badhai .
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