दिल के करीब आइये कुछ तो बताइए
यूँ आग को सुलगा के भला क्यों बुझाइए ?
दुनिया के डर से आप को तनहा न छोडिये
बस आँख बंद कीजिए मुझमे समाइये
रोयी है बहुत आँख मुकम्मल ये जिंदगी
पलकों पे मेरी फिर नए सपने सजाइए
जीवन के ओर छोर का कुछ भी पता नही
यूँ जिंदगी में आइये वापस न जाइए
मुमकिन है थोड़ी गलतियाँ होती रही “ऋषी”
खुद को न ऐसे कोसिए न ही सताइए
अनुराग सिंह "ऋषी"
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Comment
आप सभी को सादर नमन मै गज़ल का बहुत अधिक तकनीकी ज्ञान नही रखता बस गाकर धुन और ले में लिखने कि कोशिस करता हूँ त्रुटियाँ हुई तो क्षमा प्रार्थी हूँ
आशा है आप सभी का स्नेह और वात्सल्य ऐसे ही मिलता रहेगा सर
सादर
अनुराग सिंह "ऋषी"
अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई जी
बाकी तो सब चकाचक लगा, कठिन बहर है तो लयात्मक रूप से निभाने की कोशिश में चूक हो जाती है ...
दो मिसरे लय से भटक रहे हैं और एक मिसरे में न को दीर्ध मात्रिक लेने से थोडा अटपटा सा लगता है
दुरुस्त कर लें तो अच्छी ग़ज़ल हो जायेगी
बधाई एवं शुभकामनाएं
आप मिसरों का वज़्न लीखिये और फिर देखिये
शुभ-शुभ
प्रस्तुति के लिए बधाई
आभार आप सभी का मेरा सादर नमन स्वीकारें
सधन्यवाद
अच्छी कविता है ....थोडा समय और देके और भी प्रभावोत्पादकता उत्पन्न की जा सकती है
बहुत बहुत सुंदर
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