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गंजे का दर्द (घनाक्षरी )

बाल सभी झड़ गये,बुढ्ढा अब  दिखता हूँ !
हमउम्र औरतें भी,चाचा कह देती हैं !!
पत्नी भी मारे है ताना,भाग्य मेरे फूट गये !
कभी कभी वो भी मुझे,बुढ्ढा कह देती है !!


अपने ही जब कभी,अपना मज़ाक ले लें  !
किससे कहूँ कितनी,पीड़ा मुझे होती है
छुपते छुपाते कभी,दर्पण में देखूं जब !
पत्नी देख मुझे फिर,हा हा हँस देती है !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 879

Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 2, 2013 at 11:57pm
आदरणीय राम शिरोमणी जी...'पत्नी भी मारे है ताना, भाग्य मेरे फूट गये, कभी कभी वो भी मुझे बुड्ढा कह देती है! " क्या खूब लिखा है आपने उम्र के इस पङ़ाव को लेकर.." शुभकामनायें
Comment by yatindra pandey on June 2, 2013 at 11:35pm

sundar

Comment by कल्पना रामानी on June 2, 2013 at 9:57pm

बहुत अच्छे अंदाज़ में लिखा है, राम शिरोमणि जी, हार्दिक बधाई  

Comment by बृजेश नीरज on June 2, 2013 at 8:17pm

राम भाई ई त बहोत बुरा भइल! अब का करबा!
आपकी यह दशा देख सुन कर बहुत दुख हुआ। इस उम्र में बुजुर्गियत! यह ठीक नहीं। ठीक से खाया पिया करो भाई। अब रचना पर बधाई कैसे दूं।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2013 at 7:57pm

घनाक्षरी पर बढ़िया प्रयास, प्रवाह एकदो जगह बाधित है, गुनगुना कर चेक कर लें और जहाँ भी अटकाव लगें बिलकुल समझौता न करें ।

बधाई इस प्रयास पर ।  

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