हरी भरी धरती मन मोहती है ,
चहुं ओर फैली हरियाली मोहती है ,
मुसकुराते खिले कुसुम मोहते हैं,
झूमते पेड़ पौधे मन मोहते है ।
अद्भुत है धरती का सौंदर्य ,
कल कल करती नदिया बहती ,
चम चम करते पोखर तालाब ,
अद्भुत अनुपम धरा है दिखती।
किन्तु .....................
ऐ! धरती पुत्र आज तो ,
धरती माँ न ऐसी दिखती है,
टप टप गिरते आँसू बस रोती है,
मेरा श्रंगार करो बस ये ही कहती है।
किन्तु आज .....................
न होता श्रंगार न लगते वृक्ष,
न सजती फूलों की है क्यारी,
न मुसकुराते पौधे न झूमते वृक्ष,
न ही नदिया अठखेलियाँ करती ।
किन्तु ये ........................
बस कटते है कटते ही जाते है,
कहने को वृक्ष धरा का भूषण है,
जीवन दायिनी है,नदिया कहते है,
सूखती है बस सूखती है जाती है।
सोचो ................
न होंगे वृक्ष धरा पर,
न होगी जल की धार,
न होगे पर्वत धरा पर,
जो रूठ गई धरती तो क्या करोगे?
- अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
bahut abhar adarniy vijay mishra ji .
आदरणीय बृजेश जी बहुत आभार आपका । मै आपकी सलाह का पालन करूंगी ।
हाहहा... आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपने इतनी सुंदर भाषा में भाव पिरोए हैं फिर भी कह रही हैं कि साहित्यिक भाषा में कमजोर हैं। कमी की तरफ आदरणीय सौरभ जी ने इंगित किया है। वह आप तभी सीखेंगी जब दूसरों को पढ़ेंगी। आप यहां पर रोज थोड़ा समय दें। मैं जो कुछ भी सीख पाया हूं वह यहां कुछ समय देने से ही सीख पाया हूं। रचना में जो कमी इंगित की जाए उसे सकारात्मक रूप से गम्भीरता से लें। मैं जितना कुछ भी जानता हूं उसके साथ आपकी मदद अवश्य करूंगा। इसके अतिरिक्त यहां का प्रत्येक सदस्य आपकी मदद करेगा।यहां पर आदरणीय सौरभ जी, वीनस भाई, आदरणीय राजेश कुमारी जी व प्राची जी जैसे बहुत सार गुणी लोग हैं। उनकी रचनायें पढ़ें। आयोजनों में सक्रिय रूप से प्रतिभाग करें। वहां बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है और बेहतर संवाद की स्थिति भी बनती है।
इस रचना में कितना कुछ ठीक किया जा सकता है इसे देखता हूं।
आप मात्रा गणना के लिए इस लिंक का प्रयोग करें।
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यहां समूहों में बहुत उपयोगी जानकारी उपलब्ध है। आप समूहों में सम्मिलित हों और उन लेखों का अध्ययन करें। आपको बहुत सहायता मिलेगी।
सादर!
बहुत सुन्दर!
आदरणणीय गुरु जी मेरी इस विषय पर थोड़ी सहायता करें मुझे साहित्य की भाषा का उतना ज्ञान नहीं है पर आप सबकी सहायता से कुशल होने का पूरा प्रयास करूंगी ।
आदरणीय बृजेश जी, मैं साहित्यिक भाषा मे थोड़ी कमजोर हूँ आप थोड़ी मदद कर दें .
बहुत सुन्दर! भाव बहुत अच्छे हैं। आपने इस रचना को मात्रा के आधार पर साधने का प्रयास क्यों नहीं किया, समझ में नहीं आया!
इस प्रयास के लिए आपको ढेरों बधाई!
रचनाकर्म के लिए धन्यवाद.
सपाटबयानी थोड़ी अधिक हो गयी इस प्रस्तुति में. विचारों को इंगितों और संकेतों में भी कहा जा सकता है.
शुभेच्छाएँ
बेजोड! पर्यावरण दिवस पर आपको बधाई!
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