(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुन्दर रचना! बधाई स्वीकारें!
वीनीता जी , शीशे में बंद पड़ी मछलियों की यही नियति है ,कवि वहीं जो सब की भावनाएँ समझे .अति सुंदर भावाभीव्यक्ति........
सादर/
कुंती.
सराहना हेतु कोटिशः धन्यवाद, आ. सौरभ जी.
कोटिशः आभार बृजेश नीरज जी.
एक निरुपाय ज़िन्दग़ी का सुन्दर वर्णन हुआ है. इंगितों का दायरा वाकई व्यापक है.
बधाई .. .
अच्छी रचना! अच्छे भाव पिरोए आपने! मेरी बधाई स्वीकारें!
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी.
हार्दिक आभार आदरणीय कुशवाहा जी.
कोटिशः धन्यवाद अमन कुमार जी.
आभार गीतिका 'वेदिका' जी.
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