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दुनिया मुझे न समझे, तो अच्छा है !

दुनिया मुझे न समझे, तो अच्छा है !

जीवन का मुझको, अभी ज्ञान कहा ,
कैसे जीना है,मुझको , इसका  भान कहा ,
सारे भव सागर का विष पी  लू, तो अच्छा है ॥ 
पर शिवतत्व का, मुझको अभी मान कहा ,
शव से बन जाऊ शिव, ऐसी  जीवन मे  तान कहा ,
तुम मुझको न मिल पाओ , तो अच्छा है ॥ !
 अभी भी मन कच्चा है, मेरा साचे प्रेम का पान कहा ,
छुने को मन करता है, देह नश्वर  है ये सम्मान कहा ,.....
    
मोलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Vinita Shukla on June 13, 2013 at 3:02pm

बहुत गहरे, सुन्दर भाव. बधाई एवं साधुवाद.

Comment by Pragya Srivastava on June 13, 2013 at 12:00pm

अमित जी,      सारे भवसागर का विष पी लूं तो अच्छा है   

        बहुत खूब...................... बधाई

 

Comment by aman kumar on June 13, 2013 at 10:46am

सादर  प्रणाम  !

                            आपका धन्येबाद

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 12, 2013 at 6:08pm
आदरणीय..अमन जी, अति सुंदर अभिव्यक्ति "अभी भी मन कच्चा है, मेरा साचे प्रेम का पान कहाँ ...छूने को मन करता है, देह नश्वर है ये सम्मान कहाँ..." शुभकामनाऐ..

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