!!! कुण्डलियां !!!
तपता सूरज देख कर, मौसम है बेहाल।
तरू, उपवन, जन ताप से, नित.नित हुए हलाल।।
नित.नित हुए हलाल, निरूत्तर ठगे खडे़ हैं।
निर्वस्त्रहि भी ढाल, धर्म में डटे अड़े है।।
अब कालहु का काल, इन्द्र भगवन को जपता।
धरा करे चित्कार, जेठ सूरज सा तपता।।
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वाह वाह आदरणीय भाई केवल जी //बहुत ही सुन्दर कुण्डलिया लिखी है अपने //हार्दिक बधाई
सूरज का तप देख के , हाल है बेहाल
इन्द्र देवता अब करो , कुछ हमारा ख्याल
समसामयिक कुण्डलियाँ / बधाई
आदरणीय केवल भाई जी बहुत गर्मी की यथावस्था का कुण्डलिया छंद के माध्यम से सुन्दर वर्णन किया है आपने इस हेतु मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.
दोहा छंद में जगण दोष है ( क्ष, बाग = १२१) भाई जी शुद्ध वृक्ष होता है बृक्ष नहीं. सादर
आदरणीय...उम्दा रचना के लिए शुभकामनाऐं.....................
आ0 जितेन्द्र प्रसाद जी, सराहना एवं उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार। सादर,
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