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देखकर लोग बहुत दंग,पूत ,

ढोल बजते औ मृदंग,पूत !

तुमसे अब कौन मुक़ाबिल है 
जीत लेते हो खूब जंग ,पूत !

एक बिल्ली थी वो भाग गई,
तुम तो निकले दबंग,पूत !

कौन तुमसे हिसाब मांगेगा ?

डाल दी है कुएं में भंग,पूत !


ये क्या,डैडी भी खबर लेते हैं ?
कट न जाए कहीं पतंग,पूत !

__________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल 

(मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by Shyam Narain Verma on June 19, 2013 at 10:45am
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by वीनस केसरी on June 19, 2013 at 10:05am

आपकी पिछली रचनाओं के हवाले से यह रचना मुझे आश्वस्त नहीं कर पाई ...
जैसा रस और अलंकार पिछली रचनाओं में व्याप्त है उसका यहाँ सर्वथा आभाव दिखा ...

Comment by विजय मिश्र on June 17, 2013 at 1:24pm
पूत आज की जवान होती पीढ़ी है जो अपने मुकाबिल अपने पिछली पीढ़ी को नहीं समझती . शालीन और नैतिक पिता की धनवान किन्तु संस्कारहीन और कमाऊ पूत को प्रयाप्त उलाहना है यह व्यंगभरी कविता . समसामयिक , बधाई हो मान०विश्वम्भरजी .
Comment by coontee mukerji on June 16, 2013 at 5:37pm

आज के समाज का दर्शाता पिता पुत्र  की स्थिति.बहुत सटीक वर्णन है./ सादर / कुंती.

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