दर्द के खूब समंदर देखे
हमने बाहर नहीं अंदर देखे
आह को वाह में बदल दें वो
एक से एक धुरंधर देखे
देवता के गुनाह देख लिए
जब कथाओं में चंदर देखे
लोग उंगली पे उठा लेते है
कृष्ण देखे हैं ,पुरंदर देखे
फंस ही जाते हैं अपनी चालों में
जाल देखे हैं ,मछंदर देखे
_____________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
(मौलिक और अप्रकाशित )
Posted on October 6, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
मन सिहरा ,ठहरा तनिक ,देखा अप्रतिम रूप ,
भोर सुहानी ,सहचरी ,पसर गई लो, धूप !
रश्मि-रश्मि मे ऊर्जा और सुनहरा घाम,
बिखर गया है स्वर्ण-सुख लो समेट बिन दाम !
सुन किलकारी भोर की विहंसी निशि की कोख ,
तिमिर गया ,मुखरित हुआ जीवन में आलोक !
उगा भाल पर बिंदु सा लो सूरज अरुणाभ ,
अब निंदिया की गोद में रहा कौन सा लाभ !
_______________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ
(मौलिक और अप्रकाशित )
Posted on July 12, 2013 at 11:00pm — 11 Comments
चेहरे पर चेहरे जड़े हैं,
अक्स लोगों से बड़े हैं !
खो गई पहचान जब से
जहाँ थे अब तक खड़े हैं !
अभी फूलों मे महक है
इम्तहां आगे कड़े हैं !
ठोकरों से दोस्ती है ?
राह मे पत्थर पड़े हैं !
इन्हें कुछ कहना नहीं
दर्द हैं ,चिकने घड़े हैं !
_______________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
(मौलिक और अप्रकाशित )
Posted on July 9, 2013 at 9:30pm — 13 Comments
१~
बदलता अब कौन अपना आचरण है,
मधुर-स्मिति दर्द का ही आवरण है,
अनकहे शब्दों ने ढूँढी राह है ये
बादलों के बीच मे कोई किरण है !
२~
कोई छोटे हैं तो कोई बड़े हैं न,
हम सभी मुखौटे लिए खड़े हैं न,
असली चेहरा न तलाशिये हुज़ूर
एक चेहरे पर कई चेहरे जड़े हैं न !
३~
एक अनबुझी प्यास लिए हम गहरे कुएं हुए,
कभी लगी जो आग मित्र,हम उठते धुंएं हुए,
सजे हुए हैं हम…
Posted on July 5, 2013 at 12:25am — 4 Comments
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